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जुलाई, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भारत की प्रमुख जनजातियां ( Schedule Caste in India)

भारत की प्रमुख जनजातियां ( Schedule Caste in India) parachhaee.com  भारत में जनजातीय समुदाय के लोगों की काफी बड़ी संख्या है और देश में 50 से भी अधिक प्रमुख जनजातीय समुदाय हैं। देश में रहने वाले जनजातीय समुदाय के लोग नेग्रीटो, ऑस्ट्रेलॉयड और मंगोलॉयड प्रजातियों से सम्बद्ध हैं। देश की प्रमुख जनजातियां निम्नलिखित हैं- *आंध्र प्रदेश*: चेन्चू, कोचा, गुड़ावा, जटापा, कोंडा डोरस, कोंडा कपूर, कोंडा रेड्डी, खोंड, सुगेलिस, लम्बाडिस, येलडिस, येरुकुलास, भील, गोंड, कोलम, प्रधान, बाल्मिक। *असम व नगालैंड*: बोडो, डिमसा गारो, खासी, कुकी, मिजो, मिकिर, नगा, अबोर, डाफला, मिशमिस, अपतनिस, सिंधो, अंगामी। *झारखण्ड*: संथाल, असुर, बैगा, बन्जारा, बिरहोर, गोंड, हो, खरिया, खोंड, मुंडा, कोरवा, भूमिज, मल पहाडिय़ा, सोरिया पहाडिय़ा, बिझिया, चेरू लोहरा, उरांव, खरवार, कोल, भील। *महाराष्ट्र*: भील, गोंड, अगरिया, असुरा, भारिया, कोया, वर्ली, कोली, डुका बैगा, गडावास, कामर, खडिया, खोंडा,  कोल, कोलम, कोर्कू, कोरबा, मुंडा, उरांव, प्रधान, बघरी। *पश्चिम बंगाल*: होस, कोरा, मुंडा, उरां...

एक शिक्षिका से ममता स्वरुप माँ बनने तक का सफ़र Guru Purnima ke Vishesh Sandarbh me

एक  शिक्षिका से ममता स्वरुप माँ बनने तक का सफ़र एक छोटे से शहर के प्राथमिक स्कूल में कक्षा 5 की शिक्षिका थीं। उनकी एक आदत थी कि वह कक्षा शुरू करने से पहले हमेशा "आई लव यू ऑल" बोला करतीं। मगर वह जानती थीं कि वह सच नहीं कहती । वह कक्षा के सभी बच्चों से उतना प्यार नहीं करती थीं। कक्षा में एक ऐसा बच्चा था जो उनको एक आंख नहीं भाता। उसका नाम राजू था। राजू मैली कुचेली स्थिति में स्कूल आजाया करता है। उसके बाल खराब होते, जूतों के बन्ध खुले, शर्ट के कॉलर पर मेल के निशान। । । व्याख्यान के दौरान भी उसका ध्यान कहीं और होता। मिस के डाँटने पर वह चौंक कर उन्हें देखता तो लग जाता..मगर उसकी खाली खाली नज़रों से उन्हें साफ पता लगता रहता.कि राजू शारीरिक रूप से कक्षा में उपस्थित होने के बावजूद भी मानसिक रूप से गायब हे.धीरे धीरे मिस को राजू से नफरत सी होने लगी। क्लास में घुसते ही राजू मिस की आलोचना का निशाना बनने लगता। सब बुराई उदाहरण राजू के नाम पर किये जाते. बच्चे उस पर खिलखिला कर हंसते.और मिस उसको अपमानित कर के संतोष प्राप्त करतीं। राजू ने हालांकि किसी बात का कभी कोई जवाब नहीं ...

सोच का ही अंतर होता है अन्यथा दिल, दिमाग, भावनाएं और संस्कार तो एक से ही होते है

सोच का ही अंतर होता है अन्यथा दिल, दिमाग, भावनाएं और संस्कार तो एक से ही होते है  ‘‘तो कितने दिनों के लिए जा रही हो?’’ प्लेट से एक और समोसा उठाते हुए दीपाली ने पूछा. ‘‘यही कोई 8-10 दिनों के लिए,’’ सलोनी ने उकताए से स्वर में कहा. आफिस के टी ब्रेक के दौरान दोनों सहेलियां कैंटीन में बैठी बतिया रही थीं. सलोनी की कुछ महीने पहले ही दीपेन से नई नई शादी हुई थी.  दोनों साथ काम करते थे. कब प्यार हुआ पता नहीं चला और फिर चट मंगनी पट ब्याह की तर्ज पर अब दोनों शादी कर के एक ही औफिस में काम कर रहे थे, बस डिपार्टमैंट अलग था. सारा दिन एक ही जगह काम करने के बावजूद उन्हें एकदूसरे से मिलने जुलने की फुरसत नहीं होती थी. आईटी क्षेत्र की नौकरी ही कुछ ऐसी होती है. ‘‘अच्छा एक बात बताओ कि तुम रह कैसे लेती हो उस जगह? तुम ने बताया था कि किसी देहात में है तुम्हारी ससुराल,’’ दीपाली आज पूरे मूड में थी सलोनी को चिढ़ाने के. वह जानती थी ससुराल के नाम से कैसे चिढ़ जाती है सलोनी. ‘‘जाना तो पड़ेगा ही… इकलौती ननद की शादी है. अब कुछ दिन झेल लूंगी,’’ कह सलोनी ने कंधे उचकाए. ‘‘और तुम्...

स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से (द्वारा गोपाल दास नीरज)

स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से  - गोपालदास "नीरज" स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे। कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे। नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई पात-पात झर गए कि शाख़-शाख़ जल गई चाह तो निकल सकी न पर उमर निकल गई गीत अश्क बन गए छंद हो दफन गए साथ के सभी दिऐ धुआँ पहन पहन गए और हम झुके-झुके मोड़ पर रुके-रुके उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे। कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे। क्या शबाब था कि फूल-फूल प्यार कर उठा क्या जमाल था कि देख आइना मचल उठा इस तरफ़ जमीन और आसमाँ उधर उठा थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा एक दिन मगर यहाँ ऐसी कुछ हवा चली लुट गई कली-कली कि घुट गई गली-गली और हम लुटे-लुटे वक्त से पिटे-पिटे साँस की शराब का खुमार देखते रहे। कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे। हाथ थे मिले कि जुल्फ चाँद की सँवार दूँ होठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूँ दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ और साँस यूँ क...

कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है (द्वारा गोपालदास जी नीरज)

छिप-छिप अश्रु बहाने वालो !  मोती व्यर्थ बहाने वालो ! कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है। सपना क्या है? नयन सेज पर सोया हुआ आँख का पानी, और टूटना है उसका ज्यों जागे कच्ची नींद जवानी गीली उमर बनाने वालो। डूबे बिना नहाने वालो ! कुछ पानी के बह जाने से सावन नहीं मरा करता है।  माला बिखर गयी तो क्या है ख़ुद ही हल हो गई समस्या, आँसू गर नीलाम हुए तो समझो पूरी हुई तपस्या, रूठे दिवस मनाने वालो ! फटी कमीज़ सिलाने वालो ! कुछ दीपों के बुझ जाने से आँगन नहीं मरा करता है।  खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर केवल जिल्द बदलती पोथी । जैसे रात उतार चाँदनी पहने सुबह धूप की धोती वस्त्र बदलकर आने वालो ! चाल बदलकर जाने वालो ! चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है। लाखों रोज गगरियाँ फूटीं शिकन न आई पनघट पर लाखों बार किश्तियाँ डूबीं चहल-पहल वो ही है तट पर तम की उमर बढ़ाने वालो लौ की आयु घटाने वालो लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है। लूट लिया माली ने उपवन लुटी न लेकिन गन्ध फूल की, तूफ़ानों तक ने छेड़ा प...

बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे (Banaya hai maine ye ghar dhire dhire) By Dr. Ram Darash Mishra

बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे, खुले मेरे ख्वावों के पर धीरे-धीरे। किसी को गिराया न खुद को उछाला, कटा जिंदगी का सफर धीरे-धीरे। जहां आप पहुंचे छलांगे लगाकर, वहां मैं भी आया मगर धीरे-धीरे। पहाड़ों की कोई चुनौती नहीं थी, उठाता गया यूंही सर धीरे-धीरे। न हंस कर, न रोकर किसी ने उड़ेला, पिया खुद ही अपना जहर धीरे-धीरे। गिरा मैं कभी तो अकेले में रोया, गया दर्द से घाव भर धीरे-धीरे। जमीं खेत की साथ लेकर चला था, उगा उसमें कोई शहर धीरे-धीरे। मिला क्या न मुझको ऐ दुनिया तुम्हारी, मोहब्बत मिली, मगर धीरे-धीरे। साभार- साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित डॉ. रामदरश मिश्र  (हिन्दुस्तान (फुरसत) 1जुलाई 2018 को प्रकाशित)