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युवा विधवाएं और प्रतिमानहीनता (Young Widows in India)

युवा विधवाएं और अप्रतिमानहीनता भारत में युवा विधवाएं  ‘‘जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते है’’ ऐसी वैचारिकी से पोषित हमारी वैदिक संस्कृति, सभ्यता के उत्तरोत्तर विकास क्रम में क्षीण होकर पूर्णतः पुरूषवादी मानसिकता से ग्रसित हो चली है। विवाह जैसी संस्था से बधे स्त्री व पुरूष के सम्बन्धों ने परिवार और समाज की रचना की, परन्तु पति की मृत्यु के पश्चात् स्त्री का अकेले जीवन निर्वहन करना अर्थात विधवा के रूप में, किसी कलंक या अभिशाप से कम नहीं है। भारतीय समाज में बाल -विवाह की प्रथा कानूनी रूप से निषिद्ध होने के बावजूद भी अभी प्रचलन में है। जिसके कारण एक और सामाजिक समस्या के उत्पन्न होने की संभावना बलवती होती है और वो है युवा विधवा की समस्या। चूंकि बाल-विवाह में लड़की की उम्र, लड़के से कम होती है। अतः युवावस्था में विधवा होने के अवसर सामान्य से अधिक हो जाते है और एक विधवा को अपवित्रता के ठप्पे से कलंकित बताकर, धार्मिक कर्मकाण्ड़ों, उत्सवों, त्योहारों एवं मांगलिक कार्यों में उनकी सहभागिका को अशुभ बताकर, उनके सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन को पूर्ण रूपेण प्रतिबंध...

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस क्यों मनाया जाता है? और कैसे हुई इसकी शुरुआत? (8 मार्च अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस)

8 मार्च अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस क्यों मनाया जाता है?  और कैसे हुई  इसकी शुरुआत? https://www.youtube.com/watch?v=9YUUumS97QU अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस यानि 8 मार्च को दुनिया के सभी देश चाहे वह विकसित हो या विकासशील मिलकर महिला अधिकारों की बात करते हैं। महिला दिवस के दिन औरतों की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक अधिकारों के बारे में चर्चा की जाती है। साथ ही औरतों की तरक्की के विविध पहलुओं पर बातें होतीं हैं। तो आइए हम अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के बारे कुछ गुफ्तगू करते हैं। शुरू कैसे हुआ 19वीं सदी तक आते-आते महिलाओं ने अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता दिखानी शुरू कर दी थी। अपने अधिकारों को लेकर सुगबुगाहट पैदा होने के बाद 1908 में 15000 स्त्रियों ने अपने लिए मताधिकार की मांग दुहराई। साथ ही उन्होंने अपने अच्छे वेतन और काम के घंटे कम करने के लिए मार्च निकाला। यूनाइटेड स्टेट्स में 28 फरवरी 1909 को पहली बार राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का विचार सबसे पहले जर्मनी की क्लारा जेडकिंट ने 1910 में रखा। उन्होंने कहा कि...

भारतीय संस्कृति एवं महिलायें (Indian culture and women) Bharatiya Sanskriti evam Mahilayen

-डॉ0 वन्दना सिंह भारतीय संस्कृति एवं महिलायें  Indian culture and women संस्कृति समस्त व्यक्तियों की मूलभूत जीवन शैली का संश्लेषण होती है मानव की सबसे बड़ी सम्पत्ति उसकी संस्कृति ही होती है वास्तव में संस्कृति एक ऐसा पर्यावरण है जिसमें रह कर मानव सामाजिक प्राणी बनता हैं संस्कृति का तात्पर्य शिष्टाचार के ढंग व विनम्रता से सम्बन्धित होकर जीवन के प्रतिमान व्यवहार के तरीको, भौतिक, अभौतिक प्रतीको परम्पराओं, विचारो, सामाजिक मूल्यों, मानवीय क्रियाओं और आविष्कारों से सम्बन्धित हैं। लुण्डवर्ग के अनुसार ‘‘संस्कृति उस व्यवस्था के रूप में हैं जिसमें हम सामाजिक रूप से प्राप्त और आगामी पीढ़ियों को संरचित कर दिये जाने वाले निर्णयों, विश्वासों  आचरणों तथा व्यवहार के परम्परागत प्रतिमानों से उत्पन्न होने वाले प्रतीकात्मक और भौतिक तत्वों को सम्मिलित करते है।  प्रस्थिति का व्यवस्था एवं भूमिका का निर्वहन कैसे किया जाये यह संस्कृति ही तय करती है किसी भी समाज की अभिव्यक्ति संस्कृति के द्वारा ही होता है। भारतीय संस्कृति एक रूप संस्कृति के एक रूप में विकसित न  होकर मिश्रित स...

वाराणसी में निवासित विधवाएं और वैश्वीकरण (Globalization and Widows of Varanasi)

वाराणसी में निवासित  विधवाएं और वैश्वीकरण  (Globalization and Widows of Varanasi) भारतीय सामाजिक व्यवस्था धर्म आधारित व्यवस्था रही है। इस व्यवस्था में पवित्रता एवं अपवित्रता का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। दुर्खीम पवित्रता एवं अपवित्रता को प्रकार्यात्मक पहलू से जोड़ते हैं। लेकिन भारतीय समाज में कुछ स्वार्थ परक शक्तियों ने पवित्रता व अपवित्रता को प्रकार्यात्मक पहलू से न जोड़कर इसे महिला व पुरूष के संस्तरण में लागू करने का प्रयास किया और यह प्रयास कालान्तर में महिला व पुरूष के भेद के रूप में अग्रसरित हुआ। इस संस्तरण में सबसे निम्न स्थिति को प्राप्त विधवाओं पर विधवापन जैसी अपवित्रता का ऐसा ठप्पा लगा की उनका संम्पूर्ण जीवन नरकीय हो गया। कर्त्तव्य के बोझ से दबी अधिकार-वंचित, यौन-शुचिता और पवित्रता के नाम पर बराबर छली जाती रही नारी को विभिन्न धार्मिक कर्मकाण्ड़ों, उत्सवों, त्योहारों में भागीदारिता पूर्णतः प्रतिबन्धित कर दी गयी। यहाँ तक कि इस पितृसत्तात्मक समाज में विधवाओं की हत्या (पति की चिता के साथ अग्नि प्रवेश) के अमानवीय कृत्य को ‘सतीत्व’ के गौरव से महिमा मण्डित किया गय...