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  Chandrayaan-3: Advancing India's Space Program with Lunar Discoveries Introduction In recent years, India's space program has advanced remarkably, with notable successes like the Chandrayaan-1 and Chandrayaan-2 missions. The Indian Space Research Organization (ISRO) is now preparing for Chandrayaan-3, its much awaited next lunar mission. Chandrayaan-3 seeks to advance our knowledge of the Moon and establish India as a key factor in lunar exploration by building on the accomplishments and lessons learnt from its predecessors. We shall go into the specifics of Chandrayaan-3 in this article and examine its goals, value to science, and breakthroughs in technology. Overview of the mission's goals Chandrayaan-3's main goal is to place a lunar rover on the lunar surface, allowing for in-depth scientific research and exploration. The mission aims to advance our knowledge of the geology, mineralogy, and prospective resources of the Moon through in-situ experiments, sam...

कोरोना corona से बचने के कुछ सामान्य उपाय

जब 'मौत से ठन गई' थी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की, इस कविता में दिखी थी जीत........

जब 'मौत से ठन गई' थी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की, इस कविता में दिखी थी जीत........ अटल बिहारी वाजपेयी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एक राजनेता के तौर पर जितने सराहे गए हैं, उतना ही प्यार उनकी कविताओं को भी मिला है। उनकी कई कविताएं उनके व्यक्तित्व की परिचायक बन गईं तो कइयों ने जीवन को देखने का उनका नजरिया दुनिया के सामने रख दिया। लंबे वक्त से बीमार चल रहे अटल को बुधवार को लाइफ सपॉर्ट पर रखा गया तो देश-दुनिया में उन्हें मानने वाले लोगों के मन में अपने चहेते राजनेता की चिंता घर कर गई ।  साल 1988 में जब वाजपेयी किडनी का इलाज कराने अमेरिका गए थे तब धर्मवीर भारती को लिखे एक खत में उन्होंने मौत की आंखों में देखकर उसे हराने के जज्बे को कविता के रूप में सजाया था। आज एक बार फिर याद आ रही यह कविता थी- 'मौत से ठन गई'... ठन गई ! मौत से ठन गई! जूझने का मेरा इरादा न था, मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,  रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई, यूं लगा जिंदगी से बड़ी हो गई। मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं, जिंदगी सिलसिला, आज कल की नह...

पंद्रह अगस्त का दिन कहता (15 August ka Din Kahata Hai..)

पंद्रह अगस्त का दिन कहता  www.parachhaee.com पंद्रह अगस्त का दिन कहता -------------- आज़ादी अभी अधूरी है। सपने सच होने बाकी है, रावी की शपथ न पूरी है।। जिनकी लाशों पर पग धर कर आज़ादी भारत में आई। वे अब तक हैं खानाबदोश ग़म की काली बदली छाई।। कलकत्ते के फुटपाथों पर जो आँधी-पानी सहते हैं। उनसे पूछो, पंद्रह अगस्त के बारे में क्या कहते हैं।। हिंदू के नाते उनका दु:ख सुनते यदि तुम्हें लाज आती। तो सीमा के उस पार चलो सभ्यता जहाँ कुचली जाती।। इंसान जहाँ बेचा जाता, ईमान ख़रीदा जाता है। इस्लाम सिसकियाँ भरता है, डालर मन में मुस्काता है।। भूखों को गोली नंगों को हथियार पिन्हाए जाते हैं। सूखे कंठों से जेहादी नारे लगवाए जाते हैं।। लाहौर, कराची, ढाका पर मातम की है काली छाया। पख्तूनों पर, गिलगित पर है ग़मगीन गुलामी का साया।। बस इसीलिए तो कहता हूँ आज़ादी अभी अधूरी है। कैसे उल्लास मनाऊँ मैं? थोड़े दिन की मजबूरी है।। दिन दूर नहीं खंडित भारत को पुन: अखंड बनाएँगे। गिलगित से गारो पर्वत तक आज़ादी पर्व मनाएँगे।। ...

युवा विधवाएं और प्रतिमानहीनता (Young Widows in India)

युवा विधवाएं और अप्रतिमानहीनता भारत में युवा विधवाएं  ‘‘जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते है’’ ऐसी वैचारिकी से पोषित हमारी वैदिक संस्कृति, सभ्यता के उत्तरोत्तर विकास क्रम में क्षीण होकर पूर्णतः पुरूषवादी मानसिकता से ग्रसित हो चली है। विवाह जैसी संस्था से बधे स्त्री व पुरूष के सम्बन्धों ने परिवार और समाज की रचना की, परन्तु पति की मृत्यु के पश्चात् स्त्री का अकेले जीवन निर्वहन करना अर्थात विधवा के रूप में, किसी कलंक या अभिशाप से कम नहीं है। भारतीय समाज में बाल -विवाह की प्रथा कानूनी रूप से निषिद्ध होने के बावजूद भी अभी प्रचलन में है। जिसके कारण एक और सामाजिक समस्या के उत्पन्न होने की संभावना बलवती होती है और वो है युवा विधवा की समस्या। चूंकि बाल-विवाह में लड़की की उम्र, लड़के से कम होती है। अतः युवावस्था में विधवा होने के अवसर सामान्य से अधिक हो जाते है और एक विधवा को अपवित्रता के ठप्पे से कलंकित बताकर, धार्मिक कर्मकाण्ड़ों, उत्सवों, त्योहारों एवं मांगलिक कार्यों में उनकी सहभागिका को अशुभ बताकर, उनके सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन को पूर्ण रूपेण प्रतिबंध...

एक शिक्षिका से ममता स्वरुप माँ बनने तक का सफ़र Guru Purnima ke Vishesh Sandarbh me

एक  शिक्षिका से ममता स्वरुप माँ बनने तक का सफ़र एक छोटे से शहर के प्राथमिक स्कूल में कक्षा 5 की शिक्षिका थीं। उनकी एक आदत थी कि वह कक्षा शुरू करने से पहले हमेशा "आई लव यू ऑल" बोला करतीं। मगर वह जानती थीं कि वह सच नहीं कहती । वह कक्षा के सभी बच्चों से उतना प्यार नहीं करती थीं। कक्षा में एक ऐसा बच्चा था जो उनको एक आंख नहीं भाता। उसका नाम राजू था। राजू मैली कुचेली स्थिति में स्कूल आजाया करता है। उसके बाल खराब होते, जूतों के बन्ध खुले, शर्ट के कॉलर पर मेल के निशान। । । व्याख्यान के दौरान भी उसका ध्यान कहीं और होता। मिस के डाँटने पर वह चौंक कर उन्हें देखता तो लग जाता..मगर उसकी खाली खाली नज़रों से उन्हें साफ पता लगता रहता.कि राजू शारीरिक रूप से कक्षा में उपस्थित होने के बावजूद भी मानसिक रूप से गायब हे.धीरे धीरे मिस को राजू से नफरत सी होने लगी। क्लास में घुसते ही राजू मिस की आलोचना का निशाना बनने लगता। सब बुराई उदाहरण राजू के नाम पर किये जाते. बच्चे उस पर खिलखिला कर हंसते.और मिस उसको अपमानित कर के संतोष प्राप्त करतीं। राजू ने हालांकि किसी बात का कभी कोई जवाब नहीं ...

कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है (द्वारा गोपालदास जी नीरज)

छिप-छिप अश्रु बहाने वालो !  मोती व्यर्थ बहाने वालो ! कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है। सपना क्या है? नयन सेज पर सोया हुआ आँख का पानी, और टूटना है उसका ज्यों जागे कच्ची नींद जवानी गीली उमर बनाने वालो। डूबे बिना नहाने वालो ! कुछ पानी के बह जाने से सावन नहीं मरा करता है।  माला बिखर गयी तो क्या है ख़ुद ही हल हो गई समस्या, आँसू गर नीलाम हुए तो समझो पूरी हुई तपस्या, रूठे दिवस मनाने वालो ! फटी कमीज़ सिलाने वालो ! कुछ दीपों के बुझ जाने से आँगन नहीं मरा करता है।  खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर केवल जिल्द बदलती पोथी । जैसे रात उतार चाँदनी पहने सुबह धूप की धोती वस्त्र बदलकर आने वालो ! चाल बदलकर जाने वालो ! चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है। लाखों रोज गगरियाँ फूटीं शिकन न आई पनघट पर लाखों बार किश्तियाँ डूबीं चहल-पहल वो ही है तट पर तम की उमर बढ़ाने वालो लौ की आयु घटाने वालो लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है। लूट लिया माली ने उपवन लुटी न लेकिन गन्ध फूल की, तूफ़ानों तक ने छेड़ा प...

कांग्रेस-जेडीएस गठबधंन में दरार? कर्नाटक में सत्ता का सस्पेंस गहराया, 10 बड़ी बातें

कांग्रेस-जेडीएस गठबधंन में दरार? कर्नाटक में सत्ता का सस्पेंस गहराया, 10 बड़ी बातें बेंगलुरु के एक पांच सितारा होटल में जेडीएस विधायक दल की बैठक मे पार्टी के दो विधायक राजा वेंकटप्पा नायक और वेंकट राव नाडागौड़ा नदारद नजर आ रहे हैं. अहम बैठकों से विधायकों के नदारद होने के बाद राजनीतिक गलियारों में सुगबुगाहट तेज हो गई है.  parachhaee कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा के सरकार बनाने मे पेंच फंसता नजर आ रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जादू के बल पर वह सबसे आगे  है लेकिन उसे स्पष्ट बहुमत नहीं मिला हैै।  चुनाव आयोग नतीजों के अनुसार भाजपा बहुमत के आंकड़े 112 से आठ सीट पीछे है। वहीं कांग्रेस ने भाजपा को रोकने के लिए जनता दल (सेक्यूलर) एच डी कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री के लिए समर्थन देने की घोषणा की है, लेकिन बहुमत से कुछ ही सीटें कम जीतने वाली सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी भाजपा अभी भी सरकार बनाने का दावा कर रही है। कर्नाटक विधानसभा चुनावों  की मतगणना के दौरान ही जेडीएस को समर्थन देने की बात कर चुकी कांग्रेस का यह पासा लगता है उल्टा पड़ रहा है. मतगणना के बाद...

हरा सोना है "तेंदुपत्ता" Tndupatta is a Green Gold

हरा सोना है "तेंदुपत्ता" बस्तर में हर वर्ष अरबो रूपये का तेंदुपत्ता  उत्पादन होता है। तेंदुपत्ता से हजारो आदिवासियों को आमदनी होती है। वनोपज के रूप तेंदुपत्ता आदिवासियों को सर्वाधिक रोजगार एवं आर्थिक रूप से सक्षम बनाता है। तेंदुपत्ता से होने वाली आमदनी सोने चांदी के व्यापार से होने वाली आमदनी के बराबर होती है। इसी कारण यह हरा सोना के नाम से चर्चित है।  प्रत्येक वर्ष मार्च अप्रैल माह में तेंदु के छोटे छोटे पौधो ंमें नये पत्ते लगने प्रारंभ हो जाते है। ग्रामीण अपने परिवार सहित इन तेंदु के पौधों से पत्तों की तोड़ाई करते है। इन पत्तों की गडिडयां बनाकर इन्हे धुप में सुखाया जाता है। तेंदुपत्ता संग्राहकों को प्रति बोरा 2500.00 रू. की मजदुरी मिलती है।  ये पत्ते तेंदू के वृक्ष (डायोसपायरस मेलेनोक्जायलोन) से प्राप्त होते है जो इबेनेसी परिवार का पौधा है एवं भारतीय उप महाद्वीप की प्रजाति है । ट्रूप (1921) के अनुसार डायोसपायरस मेलेनोक्जायलोन (डायोसपायरस टोमेन्टोजा एवं डायोसपायरस टुपरू) समस्त भारत में शुष्क पर्णपाती वनों की एक मुख्य प्रजाति है तथा यह नेपाल, भारतीय पठार, ग...

अमेरिका और यूरोपीय देशों में आरक्षण Reservation or Affirmative Action

कौन कहता है कि अमेरिका और यूरोपीय देशों में आरक्षण नहीं है Reservation or Affirmative Action                जबसे सपा बसपा का गठबन्धन हुआ है और समाजवादी पार्टी के राष्ष्ट्रीय अध्यक्ष  Akhilesh Yadav ने जातीय जनगणना की वकालत और आबादी के सापेक्ष प्रतिनिधित्व (आरक्षण उचित शब्द नही है) की वकालत करना आरम्भ किया है और आम जनमानस में सामाजिक न्याय के मुद्दे पर चर्चा होने लगी है, तबसे आबादी में सबसे कम होने के वावजूद देश के संसाधनों पर वर्षो से कब्जा किये लोगों की मानसिक स्तिथि बिगड़ गयी है। बौखलाहट में कुछ भी बक रहे हैं। ( आप रोज हजार झूठ लिखिये, सच लिखने की जिम्मेदारी हमारे ऊपर छोड़ दीजिए। जब देश मे आग लगी हो तो इसे मेरा चिड़ी की चोंच में पानी बराबर योगदान मान लीजियेगा। में धन्य हो जाऊँगा ) साभार- अरुण कुमार, व्हाट्सएप              आरक्षण के खिलाफ बेहूदे और बेतुके तर्क दिए जाने शुरू कर दिये गए हैं। इनका पहला तर्क होता है कि दूसरे देशो मे आरक्षण नहीं दिया जाता इसलिये वे देश हमसे ज्यादा प्रगिति...

बन्द होती सार्वजनिक क्षेत्र की दवा कम्पनियाँ : सरकार की मजबूरी या साजिश? ( Public sector pharmaceutical companies closed: government compulsion or conspiracy? )

बन्द होती सार्वजनिक क्षेत्र की दवा कम्पनियाँ : सरकार की मजबूरी या साजिश? Public sector pharmaceutical companies closed: government compulsion or conspiracy? डॉ . नवमीत किसी भी देश में सरकार से अपेक्षा की जाती है कि वह उस देश की जनता के पोषण, स्वास्थ्य और जीवन स्तर का ख़याल रखे। सिर्फ़ भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की सरकारें लोगों के स्वास्थ्य का ख़याल रखने का दिखावा करती रही हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों से यह दिखावा भी बन्द होने लगा है। ख़ासतौर पर 1990 के दशक के बाद से सरकारें बेशर्मी के साथ जनता के हितों को रद्दी की टोकरी में फेंकती जा रही हैं। पिछले 20 साल में तो इस बेशर्मी में सुरसा के मुँह की तरह इज़ाफ़ा हुआ है और यह इज़ाफ़ा लगातार बढ़ता जा रहा है। बहरहाल 1978 में विकसित और विकासशील देशों के बीच और साथ ही देशों के अन्दर भी, लोगों के स्वास्थ्य की असमान स्थिति के मद्देनज़र सोवियत संघ के “अल्मा अता” में दुनिया के तमाम देशों की एक कांफ्रेंस हुई थी जिसमें घोषणा की गयी थी कि यह असमान स्थिति राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक तौर पर अस्वीकार्य है, इसलिए इस कांफ्रेंस में Health for All...

पंचकूला हिंसा और राम रहीम परिघटना : एक विश्लेषण PANCHKULA HINSA AUR RAM RAHIM PARIGHATANA: EK VISHLESHAN

पंचकूला हिंसा और राम रहीम परिघटना : एक विश्लेषण  कविता कृष्णपल्लवी बलात्कारी और हत्यारे बाबा राम रहीम की गिरफ्तारी और सज़ा के समय  पंचकूला तथा हरियाणा व पंजाब के कई शहरों में हुई हिंसा और राम रहीम परिघटना की सच्चाई को समझने के लिए पंजाब-हरियाणा में डेरों की राजनीति के इतिहास और वर्तमान को समझना ज़रूरी है। पंजाब में डेरों की राजनीति का एक लम्बा इतिहास रहा है। यूँ तो पंजाब में डेरों का इतिहास काफ़ी पुराना रहा है, लेकिन आज़ादी के बाद के वर्षों में सिख धर्म के गुरुद्वारों पर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के माध्यम से जाट सिखों के ख़ुशहाल मा‍लि‍क किसान वर्ग का राजनीतिक-सामाजिक वर्चस्व मज़बूत होने के बाद और उनके अकाली दल की राजनीति का मुख्य सामाजिक अवलम्ब बनने के बाद अलग-अलग डेरे दलित और पिछड़ी जातियों की सिख और हिन्दू आबादी को एकजुट करने वाले केन्द्र बनते चले गये। यूँ तो पंजाब-हरियाणा में ऐसे कुल 9000 डेरे हैं। इनमें से कुछ के अनुयायी लाखों हैं तो कुछ के सैकड़ों में। इन डेरों में राधा स्वामी (ब्यास), सच्चा सौदा, निरंकारी, नामधारी, सतलोक आश्रम, दिब्य ज्योति जागरण संस्थान ...