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बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे (Banaya hai maine ye ghar dhire dhire) By Dr. Ram Darash Mishra

बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे


बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे,
खुले मेरे ख्वावों के पर धीरे-धीरे।

किसी को गिराया न खुद को उछाला,
कटा जिंदगी का सफर धीरे-धीरे।

जहां आप पहुंचे छलांगे लगाकर,
वहां मैं भी आया मगर धीरे-धीरे।

पहाड़ों की कोई चुनौती नहीं थी,
उठाता गया यूंही सर धीरे-धीरे।

न हंस कर, न रोकर किसी ने उड़ेला,
पिया खुद ही अपना जहर धीरे-धीरे।

गिरा मैं कभी तो अकेले में रोया,
गया दर्द से घाव भर धीरे-धीरे।

जमीं खेत की साथ लेकर चला था,
उगा उसमें कोई शहर धीरे-धीरे।

मिला क्या न मुझको ऐ दुनिया तुम्हारी,
मोहब्बत मिली, मगर धीरे-धीरे।

साभार- साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित डॉ. रामदरश मिश्र (हिन्दुस्तान (फुरसत) 1जुलाई 2018 को प्रकाशित)

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