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भीमा कोरेगांव में हुई घटना और बाबा साहब अम्बेडकर Bhima Koee gawn me Hui Ghatana aur Baba Saheb Ambedkar

भीमा कोरेगांव में हुई घटना और बाबा साहब अम्बेडकर Bhima Koee gawn me Hui Ghatana aur Baba Saheb Ambedkar कल महाराष्ट्र बंद था,        महाराष्ट्र के अनेक संघ विरोधी संगठन उसमें शामिल थे।        सभी संगठनों ने बंद को शांतिपूर्ण रखने की अपील की थी। इसके बाद भी बंद के दरमियान सैकड़ों बसें तोड़ी गयीं, कारें जलाई गयीं, पथराव किया गया, रेलें रोकी गयीं। 1)  सभी का बंद जब शांतिपूर्ण था तो सारी संपत्तियों को हानि पहुँचाने वाले समाज द्रोही कौन थे? 2) इस विध्वंस का फायदा किसे पहुंचा और कैसे? 3) इस हिंसक आंदोलन का उद्देश क्या था? 4) इस आंदोलन से किसे सबक सिखाना था? 5)  क्या उद्देश्य प्राप्ति हो गयी सबक मिल गया? इन सवालों के जवाब भी न्यायिक जाँच मे मिलने चाहिए।      भिमा कोरेगाव के इतिहास और वर्तमान पर हम थोड़ी नजर डालते हैं- 1 जनवरी को शहीद स्तंभ पर अभिवादन करने का सिलसिला बाबा साहाब आंबेडकर जी ने शुरू किया था। बाबा साहब के महाड सत्याग्रह का नारा था "जय भवानी! जय शिवाजी!" महाराष्ट्र के जनमान...

भारत में नृत्य के प्रकार Forms of Dance in India (Bharat me Nrity ke Prakar)

भारत में नृत्य के प्रकार  Form of Dance in India भारत में प्राचीन समय से ही बहुमुखी नृत्य रूपों – शास्त्रीय और क्षेत्रीय दोनों का ही विकास हुआ है | भारतीय नृत्य कला के सभी रूपों में रिस चुका है , जो कविता , मूर्तिकला , चित्रकला , संगीत और थिएटर सहित अन्य जगहों पर देखने को मिलता है | भारत के नृत्य विशिष्ट विशेषताओं की एक साथ , एक समग्र कला है , जो दर्शन , धर्म , जीवन चक्र , मौसम , और पर्यावरण की भारतीय विश्वदृष्टि को दर्शाती है | एक गतिशील कला के रूप में , रचनात्मक कलाकारों की कल्पना के साथ , नृत्य रूपों का विकसित होना आज भी जारी है | गुफाओं में मिले चित्र , मोहन जोदड़ो की ‘ नृत्य करती स्त्री की मूर्ति ’, वेद , उपनिषद और अन्य महाकाव्यों में मिले साक्ष्य स्पष्ट रूप से नृत्य प्रदर्शन की भारत की समृद्ध परंपरा को प्रमाणित करते हैं | भरत मुनि का नाट्य शास्त्र नृत्यकला का प्रथम प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है। इसको पंचवेद भी कहा जाता है। हिन्दू धर्म में अपनी जड़ो के साथ , सदियों से नृत्य कला , मूर्तिकला के कलाकारों को प्रेरित करती रही है , जिनका प्रभाव हमारे मंदिरों पर स्पष्ट रुप से दे...

बन्द होती सार्वजनिक क्षेत्र की दवा कम्पनियाँ : सरकार की मजबूरी या साजिश? ( Public sector pharmaceutical companies closed: government compulsion or conspiracy? )

बन्द होती सार्वजनिक क्षेत्र की दवा कम्पनियाँ : सरकार की मजबूरी या साजिश? Public sector pharmaceutical companies closed: government compulsion or conspiracy? डॉ . नवमीत किसी भी देश में सरकार से अपेक्षा की जाती है कि वह उस देश की जनता के पोषण, स्वास्थ्य और जीवन स्तर का ख़याल रखे। सिर्फ़ भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की सरकारें लोगों के स्वास्थ्य का ख़याल रखने का दिखावा करती रही हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों से यह दिखावा भी बन्द होने लगा है। ख़ासतौर पर 1990 के दशक के बाद से सरकारें बेशर्मी के साथ जनता के हितों को रद्दी की टोकरी में फेंकती जा रही हैं। पिछले 20 साल में तो इस बेशर्मी में सुरसा के मुँह की तरह इज़ाफ़ा हुआ है और यह इज़ाफ़ा लगातार बढ़ता जा रहा है। बहरहाल 1978 में विकसित और विकासशील देशों के बीच और साथ ही देशों के अन्दर भी, लोगों के स्वास्थ्य की असमान स्थिति के मद्देनज़र सोवियत संघ के “अल्मा अता” में दुनिया के तमाम देशों की एक कांफ्रेंस हुई थी जिसमें घोषणा की गयी थी कि यह असमान स्थिति राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक तौर पर अस्वीकार्य है, इसलिए इस कांफ्रेंस में Health for All...

पंचकूला हिंसा और राम रहीम परिघटना : एक विश्लेषण PANCHKULA HINSA AUR RAM RAHIM PARIGHATANA: EK VISHLESHAN

पंचकूला हिंसा और राम रहीम परिघटना : एक विश्लेषण  कविता कृष्णपल्लवी बलात्कारी और हत्यारे बाबा राम रहीम की गिरफ्तारी और सज़ा के समय  पंचकूला तथा हरियाणा व पंजाब के कई शहरों में हुई हिंसा और राम रहीम परिघटना की सच्चाई को समझने के लिए पंजाब-हरियाणा में डेरों की राजनीति के इतिहास और वर्तमान को समझना ज़रूरी है। पंजाब में डेरों की राजनीति का एक लम्बा इतिहास रहा है। यूँ तो पंजाब में डेरों का इतिहास काफ़ी पुराना रहा है, लेकिन आज़ादी के बाद के वर्षों में सिख धर्म के गुरुद्वारों पर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के माध्यम से जाट सिखों के ख़ुशहाल मा‍लि‍क किसान वर्ग का राजनीतिक-सामाजिक वर्चस्व मज़बूत होने के बाद और उनके अकाली दल की राजनीति का मुख्य सामाजिक अवलम्ब बनने के बाद अलग-अलग डेरे दलित और पिछड़ी जातियों की सिख और हिन्दू आबादी को एकजुट करने वाले केन्द्र बनते चले गये। यूँ तो पंजाब-हरियाणा में ऐसे कुल 9000 डेरे हैं। इनमें से कुछ के अनुयायी लाखों हैं तो कुछ के सैकड़ों में। इन डेरों में राधा स्वामी (ब्यास), सच्चा सौदा, निरंकारी, नामधारी, सतलोक आश्रम, दिब्य ज्योति जागरण संस्थान ...