सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

भीमा कोरेगांव में हुई घटना और बाबा साहब अम्बेडकर Bhima Koee gawn me Hui Ghatana aur Baba Saheb Ambedkar

भीमा कोरेगांव में हुई घटना और बाबा साहब अम्बेडकर Bhima Koee gawn me Hui Ghatana aur Baba Saheb Ambedkar
कल महाराष्ट्र बंद था,
       महाराष्ट्र के अनेक संघ विरोधी संगठन उसमें शामिल थे।
       सभी संगठनों ने बंद को शांतिपूर्ण रखने की अपील की थी।
इसके बाद भी बंद के दरमियान सैकड़ों बसें तोड़ी गयीं, कारें जलाई गयीं, पथराव किया गया, रेलें रोकी गयीं।
1)  सभी का बंद जब शांतिपूर्ण था तो सारी संपत्तियों को हानि पहुँचाने वाले समाज द्रोही कौन थे?
2) इस विध्वंस का फायदा किसे पहुंचा और कैसे?
3) इस हिंसक आंदोलन का उद्देश क्या था?
4) इस आंदोलन से किसे सबक सिखाना था?
5)  क्या उद्देश्य प्राप्ति हो गयी सबक मिल गया?
इन सवालों के जवाब भी न्यायिक जाँच मे मिलने चाहिए।
     भिमा कोरेगाव के इतिहास और वर्तमान पर हम थोड़ी नजर डालते हैं-
1 जनवरी को शहीद स्तंभ पर अभिवादन करने का सिलसिला बाबा साहाब आंबेडकर जी ने शुरू किया था।
बाबा साहब के महाड सत्याग्रह का नारा था "जय भवानी! जय शिवाजी!"
महाराष्ट्र के जनमानस मे छत्रपती शिवाजी महाराज के महत्व और स्थान को बाबासाहब जानते थे, इस सबंध में किसी को कोई शक नही है।
बाबासाहब अपने व्यक्तित्व विकास उत्कर्ष मे शाहू महाराज और सयाजीराव गायकवाड़ जी के योगदान से भी भलीभांति परिचित थे।
इसलिए उस इतिहास मे अपने समाज के योगदान और जुड़ाव को उन्होने ढूढ़ निकाला और छत्रपती के राज्य और अधिकार का अपहरण करने वाले पेशवाओं के विरोध मे स्वजातियों का किया गया संघर्ष उन्हे गौरव जनक और उस कड़ी से जोडनेवाला दिखाई दिया। इसलिए उस समय उन्होने "भिमा कोरेगांव" का यह स्तंभ और उसके नजदीक वढू मे छत्रपती संभाजी महाराज का समाधि स्थल तथा उसके समीप गणपत गायकवाड पहलवान के समाधि स्थल का संदर्भ उन्होने अपने विरासत के रूप में स्वीकर के अपने लोगों के सामने रखा।
विगत कई सालों से बाबा साहाब के मार्ग पर चलकर उनके समाज का अपनी जड़ें और जुड़ाव ढूढ़ने तथा अपनी शांतिपूर्ण श्रद्धाजंलि देने के लिए पहुँचने का सिलसिला चल रहा था।
अचानक इस श्रंद्धाजलि कार्यक्रम के संबध में झंझट पैदा कैसे हुई? इसको हम सिलसिलेवार तरीके से देखते हैं।
सर्वप्रथम हमे यह समझने की जरूरत है की छत्रपती संभाजी महाराज को औरंगजेब की सेना ने कैसे पकड़ा? उस वक्त पकड़वाने में मददगार रंगनाथ स्वामी जो रामदास स्वामी के शिष्य थे उनका क्या योगदान था ? 
मेरी जानकारी मे रंगनाथ संभाजी महाराज पर क्रोधित था कि "उन्होने संस्कृत सीखने की जुर्रत की, संस्कृत में लिखा, शास्त्रार्थ किया तथा हिंदूधर्म के शोषणयुक्त कर्मकांडो में दखलंदाजी कर उसे बदलने का प्रयास किया" ये उसके गुस्से के मूल कारण थे।
इसलिए उसने संभाजी महाराज को सजा भी मनुस्मृति के विधि-विधान से मिलनी चाहिये, इसी शर्त पर ही औरंगजेब द्वारा संभाजी महाराज को पकड़वाने का महान कार्य किया था।
औरंगजेब सभाजी महाराज की अपराजेय युद्धकला से बहुत परेशान था इसलिये उसे कोई भी शर्त मंजूर थी।
उस शर्त के अनुसार रंगनाथ ने एक होशियार, प्रजाप्रिय, अपराजेय राजा को धोखे से पकड़वा दिया और उन्हे मनुस्मृति के विधान से निर्दयता पूर्वक मारवा दिया; यह इतिहास है।
सही  इतिहास इसलिये समझना जरूरी है कि हमसे दुबारा वही गलतियां न हो तथा उन गलतियों से हम सबक ले सकें। हमारे शक्तिस्थलों का भी हमे ज्ञान हो। इसी कारण से इतिहास का अध्ययन करना चाहिए। मगर इस समय संघशक्तीवाले संघी लोग इतिहास का विकृती करण कर के समाज की भावना भड़काने, समाज में घृणा और हिंसा भड़काने हेतु प्रयोग करते हैं।
उसी सिलसिले के तहत जिस राजा को उन्होने शुद्र, हिंदूद्रोही जैसे प्रमाणपत्र से नवाजा था ऐसे राजे छत्रपती संभाजी महाराज को  धर्मवीर संभाजी महाराज जैसी बिरूदावली से कौन लोग नवाज कर मुस्लिम विरोधी बनाने और बताने का कार्य कर रहे थे?
इस विकृत इतिहास को मनोहर उर्फ संभाजी भिडे और मिलिंद ऐकबोटे नामक ब्राम्हणों ने शिवप्रतिष्ठान और हिंदू जागरण मंच के नाम से जन मानस मे फैलाया।
संभाजी महाराज के समाधि स्थली पर हेडगेवार और गोलवलकर की फोटो रखने तथा उनका भडकाऊ साहित्य बाटने की परंपरा गत 15-20 सालो से चलाई।
गोयबल्स तंत्र के तहत झुठा इतिहास गढ़ने की परंपरा किसकी है?
दो दिन पूर्व भिडे और एकबोटे के भड़काने से कुछ नासमझ लडकों ने गणपत महार जी की समाधि का शेड तोड़ा था।
उन सभी लड़कों पर अट्रोसिटी लगाकर मराठा  बनाम महार की जातिगत लड़ाई के बीज बोने का काम संघी फडणवीसी सरकार ने किया?
समाधि के शेड को  तहस-नहस करने का कृत्य अट्रोसिटी एक्ट के दायरे में कब से आने लगा? क्या उस कानून मे विशेष संशोधन किया गया है?
अट्रोसिटी लगाने के कारण उत्सव मे शामिल होनेवाले लड़कों को उस उत्सव का विरोधी तथा गाँव-गाँव में बहिष्कारी बनाने का षड्यंत्र किसके खोपड़ी की उपज है?
जब आसपास के गाँवों मे उत्सव के प्रति आक्रोश व्याप्त हो गया था, तो फिर भी पुलिस बदोंबस्त क्यों नही था?
दंगाइयों ने पत्थर और पेट्रोल कैसे एकत्रित किया?
छत्रपती की टी-शर्ट पहने मराठा युवक को किसने मारा?
घटना के तुरंत बाद अन्य जगह की वीडिओज़ और अतिरंजित, अतिशयोक्ति वाले संदेश कौन लोग प्रसारित कर रहे थे?
2 और 3 जनवरी के विरोध प्रदर्शनों को हिंसक होने की छूट देकर अन्य समाजों में भय और आक्रोश व्याप्त होने से किसे फायदा हुआ?
भिडे और एकबोटे पर राष्ट्रद्रोह तथा समाजद्रोह के गुनाह साबित हो ऐसे फुलप्रुफ मुकदमे बनाये जायेंगे या सबूतों और साक्ष्यों के अभाव मे बरी करवाने की चाल चली जायेगी?
हमारी सरकारें और सरकारी तंत्र कभी जागृत नही रहते और आतंकवादी मुंबई को तबाह कर देते है।
उसी तरह वढू के इतिहास और वर्तमान को भी सिलसिलेवार तरीके से तबाह करने का धंधा चलाने वालों को खुली छूट दी जा रही है।
इस देश मे कुछ लोगों को भगवा आतंकवाद और हरा आतंकवाद कहने का शौक भी है और गुस्सा भी है।
जाति, धर्म, भाषा, प्रांत, आराध्यों का नाम लेकर तथा विकृत इतिहास, संस्कृति,साहित्य, भाषणों के माध्यम से द्वैष भावना फैलाना क्या आतंकवाद नहीं है? इसका जवाब हम सभी को ढूढ़ना होगा !!

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कांशीराम जीवन परिचय हिंदी में | KANSHI RAM BIOGRAPHY IN HINDI

कांशीराम जीवन परिचय  KANSHI RAM BIOGRAPHY जन्म : 15 मार्च 1934, रोरापुर, पंजाब मृत्यु : 9 अक्तूबर 2006 व्यवसाय : राजनेता बहुजन समाज को जगाने बाले मान्यबर कांशीराम साहब का जन्म 15 मार्च 1934 को पंजाब के रोपड़ जिले के ख़्वासपुर गांव में एक सिख परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री हरीसिंह और मां श्रीमती बिशन कौर थे। उनके दो बड़े भाई और चार बहनें भी थी। बी.एस.सी स्नातक होने के बाद वे डीआरडीओ में बेज्ञानिक पद पर नियुक्त हुए। 1971 में श्री दीनाभाना एवं श्री डी के खापर्डे के सम्पर्क में आये। खापर्डे साहब ने कांशीराम साहब को बाबासाहब द्वारा लिखित पुस्तक "An Annihilation of Caste" (जाति का भेद विच्छेदन) दी। यह पुस्तक साहब ने रात्रि में ही पूरी पढ़ ली।और इस पुस्तक को पढ़ने के बाद सरकारी नोकरी से त्याग पत्र दे दिया। उसी समय उंन्होने अपनी माताजी को पत्र लिखा कि वो अजीबन शादी नही करेंगे। अपना घर परिबार नही बसायेंगे। उनका सारा जीवन समाज की सेवा करने में ही लगेगा। साहब ने उसी समय यह प्रतिज्ञा की थी कि उनका उनके परिबार से कोई सम्बंध नही रहेगा। बह कोई सम्पत्ति अपने नाम नही बनाय...

भारतीय संस्कृति एवं महिलायें (Indian culture and women) Bharatiya Sanskriti evam Mahilayen

-डॉ0 वन्दना सिंह भारतीय संस्कृति एवं महिलायें  Indian culture and women संस्कृति समस्त व्यक्तियों की मूलभूत जीवन शैली का संश्लेषण होती है मानव की सबसे बड़ी सम्पत्ति उसकी संस्कृति ही होती है वास्तव में संस्कृति एक ऐसा पर्यावरण है जिसमें रह कर मानव सामाजिक प्राणी बनता हैं संस्कृति का तात्पर्य शिष्टाचार के ढंग व विनम्रता से सम्बन्धित होकर जीवन के प्रतिमान व्यवहार के तरीको, भौतिक, अभौतिक प्रतीको परम्पराओं, विचारो, सामाजिक मूल्यों, मानवीय क्रियाओं और आविष्कारों से सम्बन्धित हैं। लुण्डवर्ग के अनुसार ‘‘संस्कृति उस व्यवस्था के रूप में हैं जिसमें हम सामाजिक रूप से प्राप्त और आगामी पीढ़ियों को संरचित कर दिये जाने वाले निर्णयों, विश्वासों  आचरणों तथा व्यवहार के परम्परागत प्रतिमानों से उत्पन्न होने वाले प्रतीकात्मक और भौतिक तत्वों को सम्मिलित करते है।  प्रस्थिति का व्यवस्था एवं भूमिका का निर्वहन कैसे किया जाये यह संस्कृति ही तय करती है किसी भी समाज की अभिव्यक्ति संस्कृति के द्वारा ही होता है। भारतीय संस्कृति एक रूप संस्कृति के एक रूप में विकसित न  होकर मिश्रित स...

युवा विधवाएं और प्रतिमानहीनता (Young Widows in India)

युवा विधवाएं और अप्रतिमानहीनता भारत में युवा विधवाएं  ‘‘जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते है’’ ऐसी वैचारिकी से पोषित हमारी वैदिक संस्कृति, सभ्यता के उत्तरोत्तर विकास क्रम में क्षीण होकर पूर्णतः पुरूषवादी मानसिकता से ग्रसित हो चली है। विवाह जैसी संस्था से बधे स्त्री व पुरूष के सम्बन्धों ने परिवार और समाज की रचना की, परन्तु पति की मृत्यु के पश्चात् स्त्री का अकेले जीवन निर्वहन करना अर्थात विधवा के रूप में, किसी कलंक या अभिशाप से कम नहीं है। भारतीय समाज में बाल -विवाह की प्रथा कानूनी रूप से निषिद्ध होने के बावजूद भी अभी प्रचलन में है। जिसके कारण एक और सामाजिक समस्या के उत्पन्न होने की संभावना बलवती होती है और वो है युवा विधवा की समस्या। चूंकि बाल-विवाह में लड़की की उम्र, लड़के से कम होती है। अतः युवावस्था में विधवा होने के अवसर सामान्य से अधिक हो जाते है और एक विधवा को अपवित्रता के ठप्पे से कलंकित बताकर, धार्मिक कर्मकाण्ड़ों, उत्सवों, त्योहारों एवं मांगलिक कार्यों में उनकी सहभागिका को अशुभ बताकर, उनके सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन को पूर्ण रूपेण प्रतिबंध...