मलिन बस्ती में महिलाओं की शैक्षिक स्थिति का अध्ययन
गन्दी बस्तियों की अवधारणा एक सामजिक सांस्कृतिक, आर्थिक समस्या के रूप में नगरीकरण-औद्योगिकरण की प्रक्रिया का प्रत्यक्ष परिणाम है। शहरों में एक विशिष्ट प्रगतिशील केन्द्र के चारों ओर विशाल जनसंख्या के रूप में गन्दी बस्तियाँ स्थापित होती हैं। ये बस्तियाँ शहरों में अनेकानेक तरह की अपराधिक क्रियाओं एवं अन्य वातावरणीय समस्याओं को उत्पन्न करती है, नगरों में आवास की समस्या आज भी गम्भीर बनी हुई है। उद्योगपति, ठेकेदार व पूँजीपति एवं मकान मालिक व सरकार निम्न वर्ग एवं मध्यम निम्न वर्ग के लोगों की आवास संबंधी समस्याओं को हल करने में असमर्थ रहे हैं। वर्तमान में औद्योगिक केन्द्रों में जनसंख्या की तीव्र वृद्धि हुई है एवं उसी के अनुपात में मकानों का निर्माण न हो पाने के कारण वहाँ अनेको गन्दी बस्तियाँ बस गयी है। विश्व के प्रत्येक प्रमुख नगर में नगर के पाँचवे भाग से लेकर आधे भाग तक की जनसंख्या गन्दी बस्तियों अथवा उसी के समान दशाओं वाले मकानों में रहती है। नगरों की कैंसर के समान इस वृद्धि को विद्वानों ने पत्थर का रेगिस्तान, व्याधिकी नगर, नरक की संक्षिप्त रूपरेखा आदि तरह के नाम दिये है। गन्दी बस्तियों में शौचालय, स्नानघर, बिजली, पानी, हवा रोशनी जैसी पर्याप्त सुविधाओं के अभाव की अधिकता होती है, मच्छर, खटमल, जुओं, छिपकलियों, चूहों और संक्रमण के कीटाणुओं की बहुलता पायी जाती है जो विभिन्न तरह की रोगों को उत्पन्न करते है। निवास की ये अति अभावपूर्ण व अर्द्ध मानवीय दशा है जो मानवीय जाति को शारीरिक एवं मानसिक दृष्टि से कमजोर पीढ़ी को जन्म देने को विवस हैं।
गन्दी बस्ती की पहचान के संबंध में विभिन्न मत - गन्दी बस्तियों को विभिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न प्रकार से परिभाषित किया है कई वि़द्वानों ने जैसे-
क्वीन एवं थॉमस इन दोनों ने तो गन्दी बस्ती और रोगग्रस्त क्षेत्र में कोई अंतर नहीं किया है।
बर्गल :- ये गन्दी बस्ती और रोगग्रस्त क्षेत्र को एक-दूसरे से अलग मानते है यह गन्दी बस्ती के सन्दर्भ में कहता है कि गंदी बस्ती नगर में वे क्षेत्र है जिनमें निम्न स्तर की आवासीय सुविधा पायी जाती है। एक गंदी बस्ती का सदैव एक क्षेत्र होता है। एक अकेला मकान पतन की निकृष्ट अवस्था में होने पर भी एक गंदी बस्ती नहीं कहा जा सकता। केन्द्रीय सरकार द्वारा वर्ष 1956 में बनाए गए गंदी बस्ती क्षेत्र अधिनियम में गंदी बस्ती को इस प्रकार से परिभाषित किया गया हैः "गंदी बस्ती प्रमुख रूप से एक ऐसा निवास क्षेत्र है जहाँ के निवास स्थान नष्ट हो गए हो एवं अत्यधिक भीड़-भाड़ युक्त हो जिसका डिजाइन त्रुटिपूर्ण हो, जहाँ रोशन-दान, प्रकाश व सफाई का अभाव हो या इनमें से कुछ कारणों के सम्मिलित प्रभाव के कारण सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं नैतिकता के लिए हानिप्रद हो।’’
वर्ष 1957 में गंदी बस्तियों पर हुये एक सेमिनार में गंदी बस्तियों को निम्न प्रकार परिभाषित किया गया है। "बेढंगे तरीके से बसी हुई, अव्यवस्थित रुप से विकसित और सामान्यतः उपेक्षित क्षेत्र जो कि लोगों द्वारा घना बसा हुआ होता है तथा जिसमें बिना मरम्मत एवं उपेक्षित मकानों की भीड़-भाड़ होती है, संचार के साधन अपर्याप्त होते है, सफाई व्यवस्था के प्रति उदासीनता पायी जाती है। भौतिक एवं सामाजिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए आवश्यक सुविधाओं की पूर्ति कम से कम होती है, व्यक्ति एवं परिवार की प्रमुख सामाजिक समस्याओं से निपटने के लिए सामाजिक सेवाओं एवं कल्याण संस्थानों की सामान्यतः अनुपस्थिति होती है। इसमें निम्न स्तर का स्वास्थ्य, अपर्याप्त आय एवं निम्न जीवन स्तर पाया जाता है। भौतिक एवं सामाजिक पर्यावरण के परिणाम स्वरुप यहाँ के निवासी प्राणीशास्त्रीय, मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक परिणामों के शिकार होते हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसारः- "गंदी बस्ती एक मकान, मकानों का एक समूह या क्षेत्र है जिसकी विशेषता भीड़-भाड़ युक्त, पतनोन्मुख अस्वास्थ्य कर दशा तथा सुविधाओं का अभाव है। इन दशाओं अथवा इनमें से किसी एक के कारण इसके निवासियों अथवा समुदाय के स्वास्थ्य, सुरक्षा एवं नैतिकता को खतरा उत्पन्न हो जाता हैं।’’
गंदी बस्ती निवारक गोष्ठी, मुम्बई के अनुसारः- "गंदी बस्तियाँ उन क्षेत्रों को कह सकते है, जो अस्त-व्यस्त बसी हुई हों, अव्यवस्थित रुप से विकसित हों एवं सामान्यतः वह क्षेत्र जनाधिक्य व भीड़-भाड़ युक्त हो, टूटे-फूटे घर हो और उनकी मरम्मत के प्रति उपेक्षा बरती गई हो।’’
ब्रिटिश श्रमिक संघ कांग्रेस (British Trade Union
Congress) का एक शिष्ट मंडल 1928 ई0 में भारत आया था। इसने भारतीय श्रमिकों की आवास व्यवस्था पर जो टिप्पणी की, वह बहुत महत्वपूर्ण है- हम जहाँ कहीं भी ठहरे वहाँ श्रमिकों के निवास स्थानों को देखने के लिए गए और यदि हमने उन्हें नहीं देखा होता, तो हमें इस बात का कभी भी विश्वास नहीं हो सकता था कि इतने खराब भी मकान हो सकते हैं।
भारत में अधिक जनसंख्या होने के कारण गंदी बस्तियों की भीषण समस्या उत्पन्न हुई है। वर्तमान में गंदी बस्तियों में रहने वाले लोगों की संख्या लगभग 7 करोड़ हो गई है। निरन्तर नगरीकरण और औद्योगिकरण के कारण इन बस्तियों की संख्या में वृद्धि होती जा रही है। एक गैर-सरकारी रिपोर्ट के अनुसार भारत में बड़े नगरों में शहरी जनसंख्या के एक-चौथाई से भी अधिक व्यक्ति कामचलाऊ आश्रयों तथा गंदी बस्तियों में रहने के लिए मजबूर हैं। देश की सम्पूर्ण जनसंख्या में से 14 प्रतिशत परिवार आवास सुविधाओं से वंचित है। कुछ आवासों में से आधे से अधिक में रोशनी व हवा की सुविधाएं अपर्याप्त है।
भारत के प्रमुख शहरों विशेषकर चारों महानगरों में इनकी संख्या सर्वाधिक पाई जाती है। मुम्बई में इन्हें 'चाल’, कानपुर में , 'अहाते’, कोलकाता में 'बस्ती’, चेन्नई में 'चेरी’, दिल्ली में 'कटरा’, खान क्षेत्रों में 'धोवरो’, बागान क्षेत्रो में 'वैरेक्स’, कहा जाता है। यहाँ का वातावरण प्रदूषित होता है, अर्थात् मानवीय जीवन के लिए आवश्यक और मूलभूत सुविधाओं का अभाव पाया जाता है। इसलिए नेहरु ने इन्हें नरक कुण्ड की संज्ञा दी थी।
मसानी कहते है कि ’’विश्व की रचना ईश्वर ने की है, नगरों की मानव ने, और श्रम बस्तियों की शैतानों ने।’’
कहीं-कहीं बड़े नगरों में कुछ व्यक्ति अपने धन से मकानों के नाम पर छोटी-छोटी कोठरियाँ बनवा देते है। ऐसे क्षेत्रों में मजदूर वर्ग के लोग ही रहते है, जिनकी आमदनी का 50 प्रतिशत किरायेदारों की जेब में चला जाता है, फलस्वरुप वे कठिनाई से अपना गुजर-बसर कर पाते है। ऐसे क्षेत्र भी मलिन बस्तियों के विकास में अपना योगदान देते हैं।
मलिन बस्ती में रहने वाले लोगों का जीवन स्तर अत्यन्त ही निम्न स्तर का होता है। इनका जीवन अत्यन्त संकटपूर्ण है तथा ये लोग आजीवन अनेक विषम समस्याओं से घिरे रहते है। मलिन बस्ती की समस्याएं निम्न प्रकार से स्पष्ट की जा सकती है, भोजन, वस्त्र और रहने के लिए स्थान ये मनुष्य की भौतिक आवश्यकताएं है। मलिन बस्ती के लोगों के लिए इन आवश्यकताओं को पूरा करना एक अत्यन्त कठिन समस्या है, जनसंख्या सभ्य व शिक्षित लोगों में अशिक्षित वर्ग की तुलना में कमतर देखने को मिलती है इन मलिन बस्ती के लोगों में जनसंख्या वृद्धि भी अधिक होती है तथा स्थानान्तरण के कारण एक-एक कोठरी में 8-8 व 10-10 लोग रहते है। मलिन बस्ती में रहने वालों का जीवन अत्यन्त अभाव ग्रस्त होता है, जिससे वे अत्यन्त दुःखी व कुन्ठित रहते है अतः पेट की आग बुझाने के लिए इनमें अनैतिकता पनपने लगती है। मलिन बस्तियों से सुन्दर नगरों की शोभा मलिन हो जाती है, ये लोग संक्रमित होने के कारण विभिन्न रोग उत्पन्न करते है, तथा विभिन्न क्षेत्रों में जहाँ-जहाँ ये जाते है, अनेक अपराधी भी पनपते है, जिनका समाज पर अनिष्ठाकारी प्रभाव पड़ता है, तथा लोगों में असुरक्षा की भावना बढ़ने लगती है।
समाज में धनी ठेकेदारों तथा सरकार का यह कर्तव्य है कि अपने विकास कार्यक्रम मे गरीब तथा दयनीय स्थिति के लोगों का जीवन स्तर बेहतर बनाने की ओर विशेष प्रावधान करें। द्वितीय पंचवर्षीय योजना के फलवस्वरुप 58,000 परिवारों को मलिन व धनी बस्ती से निकाल कर सुविधाजनक आवासों में बसाया गया। तृतीय पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत मलिन बस्तियों के उन्मूलन व सुधार के लिए कुछ सरकारी व निजी प्रयास करने वालों को वित्तिय कार्यक्रम को सफल बनाने तथा इसका प्रसार करने की विभिन्न योजना का प्रावधान किया गया हैं।
भारत जनसंख्या की दृष्टि से विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है वहीं पर शिक्षा के क्षेत्र में भी सबसे बड़ी अशिक्षित जनसंख्या भी यहीं निवास करती है स्वाधीनता प्राप्ति के बाद देश ने जहाँ आर्थिक विकास किया वहीं शिक्षा के क्षेत्र में भी बहुत प्रगति की है। गन्दी बस्ती की अवधारणा को और अधिक समझने के लिए हम यहाँ नेल्स एण्डरसन द्वारा उल्लेखित विशेषताओं को देखा जा सकता है-
- बनावटः यह सभी गन्दी बस्तियों की सार्वभौमिक विशेषता है। भवन, चौगान एवं गलियों की दृष्टि से बनावट अधिक प्राचीन युगों पुरानी और गिरी हुई दिखाई देती हैं।
- गतिशीलताः गन्दी बस्ती सामान्यतः एक ऐसा क्षेत्र होता है जिसमें उच्च स्तर की निवासीय गतिशीलता पाई जाती है, किन्तु परिवार द्वारा ग्रहण की हुई बस्ती में गतिशीलता कम होती है। ऐसी गतिशीलता अमेरिका व यूरोप की गन्दी बस्तियों में अधिक होती हैं।
- गन्दी बस्ती की स्थिरताः अमेरिका के तीव्र गति से बढ़ने वाले नगरों में कुछ क्षेत्र जहाँ पहले गन्दी बस्तियाँ थी उन्हें बाद में दूसरे कार्य के लिए ग्रहण कर लिया गया यह देखा गया कि जो बस्तियाँ वहाँ से हटा दी गई वे कहीं दूसरी जगह बन गई। इस प्रकार गन्दी बस्तियाँ समाप्त न होकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर बन जाती है।
- जीवन विधिः निवासियों के सामाजिक संगठन के आधार पर गन्दी बस्तियाँ अलग-अलग प्रकार की होती है। कुछ बस्तियों के निवासी परस्पर अपरिचित होते है। कुछ में परिवारजन अथवा परिचित लोग होते है। प्रवासियों द्वारा बनाई हुई बस्तियों में दृढ़ सामाजिक संगठन पाया जाता है।
- आर्थिक स्थितिः सामान्यतः गन्दी बस्ती में कम आय वाले लोग रहते है। यद्यपि कुछ ऐसे भवन भी हो सकते हैं जो जीर्ण-शीर्ण हैं, किन्तु उनमें रहने वाले गरीब नहीं है फिर भी गन्दी बस्ती एक गरीबी का क्षेत्र होता है, देसाई व पिल्लई लिखते हैं, ’’गन्दी बस्तियों की सर्वाधिक महत्वपूर्ण एंव सार्वभौमिक विशेषता गरीबी है। गन्दी बस्तियों में रहने वाले लोग बाजार द्वारा तय किया हुआ किराया देने में असमर्थ होते हैं।’’
- स्वास्थ्य और सफाईः गन्दी बस्ती में जैसा कि इसके नाम से ही प्रकट होता है, दूसरे निवासों की तुलना में स्वच्छता और सफाई की सार्वजनिक सेवाओं का अभाव होता है। अनेक कारणों से यहाँ बीमारी व मृत्युदर अधिक होती है। अमेरिका के सिरदर्द का इलाज करने वाले अस्पताल ने बताया कि 92ः सिरदर्द के मरीज गन्दी बस्तियों के थे।
- सामाजिक पृथक्करणः गन्दी बस्तियों में वे लोग रहते है जिनकी सामाजिक प्रतिष्ठा निम्न होती है। यहाँ के अधिकांश निवासी श्रम बाजार में श्रमिक के रुप में कार्य करते हैं। वे अन्य नागरिकों के साथ-भी कार्य करते है और अपने आप को एक समूह के रुप में पहचानते है।
- जनसंख्याः गन्दी बस्तियों में कई प्रकार के लोग रहते हैं ऐसे लोग जिन्हें अन्यत्र कहीं स्थान न मिला हो या दूसरी जगह रहने में असमर्थ होते है, यहाँ आकर रहने लगते हैं। इस प्रकार से यह वृद्धों, बीमारों निवास रहित लोगों तथा समाज में कुसमायोजित लोगों के लिए शरण-स्थल होता है किन्तु जिन गन्दी बस्तियों में सामुदायिक भावना विद्यमान होती है वहाँ के लोगों को स्वीकार नहीं किया जाता है। यदि किसी गन्दी बस्ती का संगठन प्रजाति एवं संस्कृति के आधार पर होता है तो उसमें कुछ सीमा तक सामाजिक संगठन भी पाया जाता है।
गन्दी बस्तियों का निर्माण एवं विकास :-
- प्राकृतिक प्रकोपः जब कभी प्राकृतिक प्रकोप होता है, अकाल, अतिवृष्टि, भूकम्प एवं संक्रामक रोग आते है तो लोग अपने घर को छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर चले जाते हैं और वहीं जनाधिक्य के कारण गन्दी बस्तियाँ पनपने लगती हैं।
- जनसंख्या में वृद्धिः जनसंख्या वृद्धि जितनी तीव्र गति से हुई, उसी तीव्र गति से मकानों का निर्माण नहीं होने से लोगों के लिए आवास का अभाव पैदा हुआ और लोग भीड़-भाड़ युक्त मकानों में अथवा एक ही मकान में कई परिवार मिलकर रहने लगे फलस्वरुप गन्दी बस्तियाँ पनपीं।
- औद्योगिकरण एवं नगरीकरणः औद्योगिकरण एवं नगरीकरण ने गन्दी बस्तियों को जन्म दिया। उद्योगों में काम करने के लिए गाँव से आने वाले लोगों को निवास के लिए जब कम किराए पर अच्छे मकान उपलब्ध नहीं होते हैं तो वे गन्दे मकानों में रहने लगते हैं अथवा खाली पड़ी भूमि पर अनाधिकृत कब्जा कर कच्चे मकान बना लेते हैं, नगर की परिधि एवं उद्योगों के आस-पास में काम करने वाले श्रमिकों द्वारा ऐसी ही बस्तियों का निर्माण किया जाता है।
- नगरीय आकर्षणः नगरों में मनोरंजन चिकित्सा, पुलिस, न्यायालय, नल, बिजली, शिक्षा आदि की सुविधाओं के कारण लोग आकर्षित होकर वहाँ निवास के लिए आते है। उनके लिए आवास के अभाव के कारण नगरों में गन्दी बस्तियों का निर्माण एवं प्रसार होने लगते है।
- सामाजिक पृथकताः जातीय भेदभाव के कारण भारतीय नगरों में जातिगत मोहल्ले पाये जाते हैं। एक जाति के लोग एक स्थान पर ही रहते हैं। निम्न जातियों की बस्तियाँ अपेक्षाकृत अधिक दयनीय स्थिति में हैं। उच्च जातियों से सम्पर्क के अभाव के कारण निम्न जाति के व्यक्ति निवास की उत्कृष्ट दशा ग्रहण नहीं कर पाते।
- गरीबीः गन्दी बस्तियों के निर्माण का प्रमुख कारण गरीबी है। लोगों के पास इतना पैसा नहीं होता है कि वे ऊँचे किराए के स्वास्थ्यप्रद एंव अच्छे मकानों को किराए पर लेकर रह सके। परिणामस्वरुप वे सस्ते किराए के मकानों में रहते हैं जो गन्दी बस्तियों में ही उपलब्ध होते हैं।
- देशान्तरगमनः आज लोगों में गतिशीलता बढ़ी है। यातायात की सुविधा ने भी इस प्रक्रिया को प्रोत्साहन दिया है। लोगों में देशान्तरगमन करने की बढ़ती प्रवित्तियों ने नगरों में बसने का आकर्षण पैदा किया और वहाँ गन्दी बस्तियों को जन्म दिया। करोड़ों की संख्या में बंग्लादेश से आए शरणार्थियों ने गन्दी-बस्तियों के विस्तार में योगदान किया हैं।
- मकानों की कमीः नगरों में मकानों के अभाव के कारण लोगों को मजबूरी में गन्दी बस्तियों में रहना पड़ता है। मकानों की माँग की तुलना में पूर्ति कम होने से वहाँ के मकानों के किराये बढ़ जाते हैं। भू-स्वामी और सम्पन्न लोग एक-एक कोठरी वाले ऐसे मकान बनाते हैं जिसमें श्रमिक लोग रह सकें। इन मकानों में सुविधाओं का अभाव होता है और धीरे-धीरे ये क्षेत्र गन्दी बस्तियों में बदल जाते हैं।
- सरकारी प्रयत्नों का अभावः गन्दी बस्तियों के विकसित होने का एक कारण स्वयं सरकार द्वारा श्रमिकों एवं इन बस्तियों में सफाई, सुविधा आदि के प्रति उपेक्षा बरतना है। सरकार यदि मकान मालिकों को निवास के निर्माण एवं सफाई के समुचित निर्देश दे और स्वयं भी उसके लिए स्वच्छ कालोनियाँ बनाए तो गन्दी बस्तियाँ विकसित नहीं हो पाएगी।
गन्दी बस्तियों के दुष्परिणाम :-
- स्वास्थ्य का ह्रासः आवास की दुर्व्यवस्था होने एवं गन्दी बस्तियों में रहने से लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। मानव के लिए शुद्ध हवा, जल एवं रोशनी अति आवश्यक है। इनके अभाव में कई प्रकार की बीमारियाँ फैलती है और शरीर कमजोर हो जाता है? डॉ0 अमर नारायण अग्रवाल ने अपनी पुस्तक इण्डस्ट्रियल हाउसिंग इन इण्डिया में लिखा है, मुम्बई की चालें, कानपुर, लखनऊ और हावड़ा की आन्तरिक बस्तियाँ जूट मिल के गाँव वाले छप्पर, कोयले की खानों के गन्दे धोवरो तथा चेन्नई के औद्योगिक कस्बे के गन्दे छप्पर सभी तपेदिक और दूसरे श्वास रोगों के घर बन गए है। गन्दी बस्तियों में मृत्युदर अन्य स्थानों की बजाय अधिक है।
- नैतिक पतन और अपराधः गन्दे वातावरण में रहने के कारण लोगों की मनोवृŸा अपराधी बन जाती है और उनका नैतिक पतन हो जाता है उनमें चोरी, वेश्यावृत्ति , शराबखोरी और जुआ खेलने की आदतें जन्म लेती हैं। मकानों की उचित व्यवस्था के अभाव में लोग गाँवों से अपनी पत्नी साथ नहीं ला पाते, अतः वे वेश्यागामी हो जाते है और उन पर नियंत्रण में शिथिलता आ जाती है। गन्दी बस्तियों में यौन अधिकार अधिक पाये जाते हैं। गरीबी के कारण बच्चे इधर-उधर घूमते है जिससे बाल अपराध और आवारागर्दी पनपती है। इस संदर्भ में डॉ0 मुखर्जी ने लिखा है, ’’भारतीय औद्योगिक केन्द्रों की इन असंख्य गन्दी बस्तियों में मनुष्यता का निःसन्देह ही निदर्यता के साथ-गला घोंटा जाता है, नारीत्व का अपमान होता है और शिशुता को प्रारम्भ से विषपान कराया जाता है।
- निम्न जीवन स्तरः गन्दी बस्ती में रहने वाले व्यक्तियों की कार्यक्षमता कम होती है जिसका प्रभाव उनकी आय पर पड़ता है और कम आय होने पर उच्च जीवन स्तर व्यतीत करना सम्भव नहीं हो पाता। यहाँ तक कि लोग अपनी आवश्यक आवश्यकताओं को भी जुटाने में असमर्थ होते हैं।
- आय में कमीः आवास की बुरी व्यवस्था व्यक्ति की कार्यक्षमता घटाती है जिसके फलस्वरुप व्यक्ति की आय कम हो जाती है और वह गरीबी की स्थिति से छुटकारा पाने में असमर्थ होता हैं।
- श्रमिकों की कुशलता पर प्रभावः श्रमिकों की कुशलता के लिए आवश्यक है कि उनका स्वास्थ्य भी अच्छा हो। मकान ऐसे हो जहाँ शुद्ध हवा व रोशनी हो ताकि वे अपनी थकावट दूर कर सकें एवं कार्य करने की क्षमता को पुनः प्राप्त कर सके किन्तु स्वच्छ एवं पर्याप्त मकानों के अभाव में श्रमिकों की कार्यक्षमता घट जाती हैं।
- सांस्कृतिक स्तर पर ह्रासः दयनीय आवास व्यवस्था के कारण लोगों के सांस्कृतिक स्तर में गिरावट आ जाती है। वेश्यागमन के कारण लोगों का नैतिक पतन हो जाता है मुखर्जी ने लिखा है, ’’वेश्यागमन की प्रवित्तियों से स्त्री और पुरुष दोनों ही के चरित्र दूषित होते है।’’ उनका स्वास्थ्य खराब हो जाता है और राष्ट्र का सांस्कृतिक स्तर गिर जाता है।
- राष्ट्र को हानिः आवास की दुर्व्यवस्था के कारण श्रमिकों का स्वास्थ्य प्रभावित होता है। इससे उनकी कार्यक्षमता घट जाती है तथा औद्योगिक तनाव एवं संघर्ष पैदा होते हैं। इन सभी का राष्ट्रीय उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। सरकार को समाज कल्याण के लिए अधिक पैसा खर्च करना पड़ता है।
गन्दी बस्तियों के विकास हेतु निम्न योजनाएंः-
- अम्बेडकर वाल्मीकि मलिन बस्ती आवास योजनाः इस योजना को प्रधानमंत्री द्वारा औपचारिक ढंग से 2 दिसम्बर 2001 को प्रारम्भ किया गया था। इस योजना का उद्देश्य शहरी क्षेत्रों की मलिन बस्तियों में रहने वाले गरीब और निर्बल वर्गों के लोगों को आवासीय इकाइयों की व्यवस्था करना है। इसके अन्तर्गत इन क्षेत्रों में रहने वाले गरीब अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़े वर्गो तथा अन्य कमजोर वर्गो के परिवारों को वहन योग्य मूल्य पर आवासीय सुविधा उपलब्ध कराना है।
- निर्मल भारत अभियान योजनाः इसकी घोषणा प्रधानमंत्री द्वारा 15 अगस्त, 2002 को की गई। योजना का मुख्य उद्देश्य गन्दी बस्तियों में सामुदायिक शौचालयों की सुविधा को विस्तारित करना बताया गया है।
- कुटीर ज्योति कार्यक्रमः हरिजन परिवारों सहित आदिवासी और गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले ग्रामीण परिवारों के जीवन स्तर में सुधार के लिए भारत सरकार द्वारा वर्ष 1988-89 में कुटीर ज्योति चलाया गया। इसका उद्देश्य गरीबी रेखा के नीचे जीवन- यापन करने वालों के लिए रु 400 की सरकारी सहायता उपलब्ध कराना।
शिक्षा मात्र साक्षरता नहीं है अपितु वह व्यक्ति के मन का अनुशासन और उसके वैचारिक आयाम को द्विगुणित करता है। यह समकालीन परिवेश के प्रति वृहद दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है। शिक्षा के सन्दर्भ में निम्न पंक्तियाँ इस प्रकार हैं-
"होता है निर्माण देश का, पाकर उत्तम शिक्षा।
करे देश के सफल नागरिक निज कर्तव्य समीक्षा।।
क्या विस्मय यदि घिरी हुई है घोर घटाएं काली,
जबकि देश में शिक्षा दूषित हो गई प्रणाली।।"
शिक्षा का मूलभूत उद्देश्य व्यक्ति की ऐसी स्वतंत्रता है जो उसके जीवन में पूर्णता की अनुभूति जगाये सबके बीच समानता लाये, व्यक्तिगत उत्कृष्टता को बढ़ावा दें, व्यक्तिगत और सामूहिक आत्मनिर्भरता लाये और इन सबसे ऊपर राष्ट्रीय एकजुटता पर बल दें।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव कोफी अन्नान ने अपने सन्देश में कहा हैं :- स्वास्थ्य, शान्तिपूर्ण और सफलतामूलक समाज के लिए शिक्षा के क्षत्र में लैंगिक समानता स्थापित करने का हर सम्भव प्रयास किया जाना चाहिए। जब तक पैसा नहीं होता तब तक स्वास्थ्य, सामाजिक एवं विकास संबंधी लक्ष्यों को हासिल नहीं किया जा सकता है।ं
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