बन्द होती सार्वजनिक क्षेत्र की दवा कम्पनियाँ : सरकार की मजबूरी या साजिश? ( Public sector pharmaceutical companies closed: government compulsion or conspiracy? )
बन्द होती सार्वजनिक क्षेत्र की दवा कम्पनियाँ : सरकार की मजबूरी या साजिश? Public sector pharmaceutical companies closed: government compulsion or conspiracy? डॉ . नवमीत किसी भी देश में सरकार से अपेक्षा की जाती है कि वह उस देश की जनता के पोषण, स्वास्थ्य और जीवन स्तर का ख़याल रखे। सिर्फ़ भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की सरकारें लोगों के स्वास्थ्य का ख़याल रखने का दिखावा करती रही हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों से यह दिखावा भी बन्द होने लगा है। ख़ासतौर पर 1990 के दशक के बाद से सरकारें बेशर्मी के साथ जनता के हितों को रद्दी की टोकरी में फेंकती जा रही हैं। पिछले 20 साल में तो इस बेशर्मी में सुरसा के मुँह की तरह इज़ाफ़ा हुआ है और यह इज़ाफ़ा लगातार बढ़ता जा रहा है। बहरहाल 1978 में विकसित और विकासशील देशों के बीच और साथ ही देशों के अन्दर भी, लोगों के स्वास्थ्य की असमान स्थिति के मद्देनज़र सोवियत संघ के “अल्मा अता” में दुनिया के तमाम देशों की एक कांफ्रेंस हुई थी जिसमें घोषणा की गयी थी कि यह असमान स्थिति राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक तौर पर अस्वीकार्य है, इसलिए इस कांफ्रेंस में Health for All...