सामाजिक रूपांतरण में मीडिया की भूमिका (Role of Media in Social Transformation) Samajik Rupantaran me Media ki Bhumika
सामाजिक रूपांतरण में मीडिया की भूमिका
Role of Media in Social Transformation
संचार का इतिहास उतना ही प्राचीन है जितना की
ये समाज, परन्तु मीडिया शब्द का आविर्भाव बहुत अधिक प्राचीन नहीं है, संचार
जहाँ संदेशों के संचरण का पर्याय है, मीडिया बदलाव और एक क्रान्ति का नाम है,
जिसने
इतनी तेजी से और इतनी गहराई में पैर जमाये हैं कि आज मीडिया के बिना समाज की
कल्पना पाषाण काल में जाने जैसा है। सामाजिक रूपांतरण एक रूढ़ शब्द नहीं है,
बल्कि
इसकी आत्मा में एक गतिशीलता का भाव छुपा हुआ है। सामाजिक संदर्भों में रूपांतरण एक
कायिक प्रकिया है, जिसमें व्यक्ति, संस्थाएं,
समाज
या समूह के व्यवहार में एक किस्म का आमूल-चूल परिवर्तन देखा जाता है। यह परिवर्तन
सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही तरह का हो सकता है।
जहां तक सामाजिक रूपांतरण में मीडिया का भूमिका
का प्रश्न है, यह शैक्षिक नवाचार के एक प्रतिरूप के रूप में
अभी तक सामने आया देखा जाता रहा है। मीडिया समाज को बदलने का माध्यम है और इसके
शब्द ऐसे हथियार हैं, जो व्यक्ति की मानसिकता को तत्काल
प्रभावित-अभिप्रेरित करने की क्षमता रखते हैं। जब भी मीडिया और समाज की बात की
जाती है तो मीडिया को समाज में जागरूकता पैदा करने वाले एक माध्यम के रूप में देखा
जाता है, जो आम जनमानस को सही व गलत करने की दिशा में एक प्रेरक का कार्य करता
नजर आता है। जहां कहीं भी अन्याय है, शोषण है, अत्याचार,
भ्रष्टाचार
और छलना है उसे जनहित में उजागर करना मीडिया का मर्म और धर्म है ।
मीडिया ने पिछले
एक दशक में मानव अभिरुचि की पत्रकारिता, नो नेगेटिव अखबार, सामाजिक
बदलाव के वाहकों की प्रेरक जीवन गाथाओं पर अपना ध्यान केंद्रित किया है। आज की
भागमभाग भरी जिंदगी में किसी के पास भी वक्त की सबसे ज्यादा कमी है। इसके कारण
रिश्तों और पारिवारिक संबंधों पर प्रतिकूल असर देखा जा रहा है। हां घर-परिवार का
व्यवहार बदलने, प्रेरक संदर्भों द्वारा समाज की मानसिकता में
परिवर्तन लाने, सामाजिक तौर पर या समूह को प्रेरित कर समाज के
लिए कुछ अच्छा करने और नागरिकों के कर्तव्य याद दिलाने में मीडिया की भूमिका प्रखर
रूप से सामने आयी है। प्रस्तुत शोध पत्र में मीडिया और सामाजिक बदलाव के अंतरसंबंध
को देखने की कोशिश की जाएगी तथा मीडिया द्वारा सामाजिक बदलाव हेतु उठाए मुद्दों पर
भी चर्चा की जाएगी। व्यावसायिक रुझानों के बावजूद सामाजिक रूपांतरण में ऐसी पहल को
सापेक्ष प्रतिष्ठा मिली है और पाठकों के फीडबैक का अध्ययन का निष्कर्ष भी है कि
समाज और उसमें रह रहा व्यक्ति आमतौर पर सकारात्मक तौर पर सोचता है, सकारात्मक
चीजें करना चाहता है, सिर्फ उसकी मनोवृत्ति को एक दिशा देने का
उत्प्रेरक होना चाहिए।
कुछ उदाहरण यहां समीचीन हैं। लगातार बढ़ती वृद्ध
आबादी और वृद्धों के प्रति वैयक्तिक असंवेदनशीलता के बढ़ने पर मीडिया ने समाज का
ध्यान खींचा। वृद्धों की परिवार में महती भूमिका और उनका उत्तरकाल उनकी पूर्ववर्ती
पीढ़ियों की धरोहर है, यह बताने, समझाने और उसी
के अनुरूप समाज के ढालने में मीडिया ने कई अभियान चलाये हैं। अंग्रेजी माध्यम की
पत्रकारिता ने जन-सरोकार से जुड़े इस मुद्दे पर अपने परिशिष्टों में साक्षात्कार के
आधार पर कई रिपोर्टें प्रकाशित की, जिससे वृद्धों के प्रति जिम्मेवारी का
भाव अब उनकी संतानों में बढ़ता देखा जा रहा है। दूसरी ओर, पुत्र की कामना
में जब समाज की औरतें नाना प्रकार की प्रताड़नाएं झेल रही थीं, तब
मीडिया ने बेटी की अहमियत साबित करने और उसकी सुरक्षा हेतु जी-जान लगा दिया।
आज की
तारीख में किसी भी विज्ञापन में जहां परिवार को दिखाया जाता है, वहां
बेटियां सबसे आगे हैं। उनकी उपलब्धियों को समाज के सामने लाकर उनकी अहमियत बताने
की मीडिया द्वारा छेड़ी गयी मुहिम का ही असर है कि तमाम सेलिब्रिटी यदि कोई बच्चा
गोद लेना चाहते हैं, तो वे बेटियों को प्राथमिकता दे रहे हैं। अपवाद
को छोड़ दें तो मीडिया की जागरूकता की वजह से ही गर्भ में पल रही बेटी को मार डालने
की घटना में तेजी से गिरावट दर्ज हुई है। मीडिया ने जनमानस को समझाने में काफी हद तक
सफलता हासिल की है कि बेटा और बेटी में कोई फर्क नहीं। जरूरी नहीं कि पुत्र ही
परिवार का चिराग हो। बेटियां भी अवसर मिलने पर वे सारे काम कर सकती हैं, जिससे
मां-बाप का सिर गर्व से ऊंचा हो सकता है। इस मुहिम की सफलता ने यह साबित कर दिया
है कि ईमानदारी से चलाया गया मीडिया का हर सकारात्मक अभियान सामाजिक रूपांतरण का
एक वाहक बन कर सामने आया है।
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