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Evaluation of Article 370 (अनुच्छेद 370 का मूल्यांकन)

अनुच्छेद 370 का मूल्यांकन(Evaluation of Article 370)


अनुच्छेद 370 के पक्ष में तर्क -
1.      संविधान में व्यवस्था- इस अनुच्छेद-370 के समर्थन में सबसे प्रमुख तर्क यह देते है कि संघ सरकार को यह अधिकार प्राप्त नहीं है कि वह संविधान के अनुच्छेद-370 अथवा उसमें किसी अंश को हटा सके। संघ की सरकार यह कार्य जम्मू-कश्मीर राज्य की विधान मण्डल की सहमति से ही ऐसा कर सकती है। संविधान में अनुच्छेद 370 के  तीसरे खण्ड में इस बारे में यह स्पष्ट उल्लेख है कि- ‘‘इस अनुच्छेद के पूर्वगामी अनुच्छेदों में किसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रपति लोक अधिसूचना द्वारा घोषणा कर सकेगा कि यह अनुच्छेद प्रवर्तन में नही रहेगा या ऐसे अपवादों और उपांतरणों सहित ही किसी निश्चित तारीख से प्रवर्तन में रहेगा जो वह विनिर्दिष्ट करे, परन्तु राष्ट्रपति द्वारा ऐसी अधिसूचना निकाले जाने से पहले खण्ड (2) में निर्दिष्ट उस राज्य की संविधान सभा की सिफारिश आवश्यक होगी।’’ स्पष्ट है कि संविधान के अनुच्छेद 370 में किसी भी प्रकार के परिवर्तन के लिए अथवा इसे समाप्त करने के लिए जम्मू-कश्मीर राज्य के विधान मण्डल की सहमति आवश्यक है।
2.      नैतिक दायित्व –
संविधान के अनुच्छेद 370 के समर्थको का दूसरा महत्वपूर्ण तर्क यह है कि भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर राज्य की जनता को यह आश्वासन दिया था कि भारत संघ में रहते हुए भी जम्मू-कश्मीर राज्य का एक अलग संविधान होगा, उसकी अलग पहचान होगी और उसका अलग ध्वज होगा। संविधान में अनुच्छेद 370 को बनाए रखने के पीछे भारत सरकार का यह नैतिक दायित्व भी कार्य कर रहा है।
3.      राजनीतिक दृष्टिकोण –
संविधान में अनुच्छेद 370 बनाए रखने के पीछे एक अन्य दलील यह भी दी जाती है कि संविधान में बड़े-बड़े परिवर्तन  लोक सहमति और जनादेश के आधार पर ही लाए जाते है। वर्तमान में देश की राजनीतिक परिस्थितियाँ इस अनुच्छेद को हटाये जाने के लिए उचित नहीं है। इस अनुच्छेद को हटाए जाने से जम्मू-कश्मीर की जनता और संघ की सरकार के बीच खाई चौड़ी हो सकती है जो भारत राष्ट्र के हित में नहीं है। अधिकांश विद्वान इस तथ्य से सहमत है कि संविधान सभा का अनुच्छेद 370 एक अस्थाई व्यवस्था है तथा इसे एक-न-एक दिन तो हटाया जाना ही है, किन्तु इसके लिए उपर्युक्त राजनीतिक वातावरण और व्यापक समझ पैदा करने की आवश्यकता है। पहले इसके लिए वहाँ की जनता का मन जीतने के सूक्ष्म एंव मनोवैज्ञानिक प्रयत्न किए जाने चाहिए।

अनुच्छेद 370 के विपक्ष में तर्क -
1.      अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपबन्ध –
संविधान के अनुच्छेद-370 को हटाने के समर्थक विद्वानों का तर्क है कि जब भारत के संविधान के भाग-21 का शीर्षक ही अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपलब्ध है तो फिर 50 वर्षो से भी अधिक समय से यह व्यवस्था अब तक क्यो बनी हुई है? उसके अनुसार यह  व्यवस्था अल्पकालिक थी। अस्थाई शब्द अल्पकालिक होता है अतः इसको अतिसिघ्र हटा देना चाहिए।
2.      राजनीतिक पक्ष –
संविधान का अनुच्छेद-370 जम्मू-कश्मीर की जनता का कोई मौलिक अधिकार नहीं है। यह तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों में भारत सरकार द्वारा कश्मीर की जनता को दिया गया अस्थाई आश्वासन था। वर्तमान समय में वे परिस्थियाँ विद्यमान नहीं रही है तो फिर इसे बनाए रखने का किसी भी प्रकार से औचित्य नहीं रहा है।
3.      संविधान के किसी भी अनुच्छेद को अलग से नहीं देखा जा सकता-
विद्वानों का तर्क है कि जब संविधान का कोई अनुच्छेद भारत की एकता और अखण्डता के लिए चुनौती बन जाये तो भारतीय संसद के पास ऐसी किसी भी धारा, अनुच्छेद या कानून में संशोधन करने का अधिकार है। संविधान के किसी भी एक अनुच्छेद को अलग करके नहीं देखा जाना चाहिए। उसे दूसरे अनुच्छेदों के संदर्भ में ही देखना चाहिए। भारत के संविधान का पहला अनुच्छेद-370 से अधिक महत्व का है। अनुच्छेद प्रथम  भारत को राज्यों का संघ बनाया है तथा उसके राज्यों और भू-भागों को प्रथम अनुसूची में लिपिबद्ध करता है। इस अनुसूची में जम्मू-कश्मीर राज्य भारत का 15 वां राज्य है। इसलिए प्रथम, तो यह अनुच्छेद पूरी तरह से जम्मू-कश्मीर राज्य पर लागू होता है। दूसरे अनुच्छेद-370 एक अल्पकालीन  एवं संक्रमणकालीन व्यवस्था है। तीसरे, संसद संविधान में इसके अनुच्छेद-368 के अन्तर्गत संशोधन करने के लिए पूर्णरूप से सक्षम है। चौथे, संविधान के अनुच्छेद-355 के अन्तर्गत संघ की सरकार का यह दायित्व है कि वह राज्यों को बाहरी आक्रमण और आन्तरिक गड़बडियों से रक्षा करे। देश की वर्तमान स्थिति में जम्मू-कश्मीर राज्य में बाहरी आक्रमण का खतरा तथा आन्तरिक अशांति एवं विद्रोह सभी मौजूद हैं। वहाँ पर गम्भीर आतंकवादी गतिविधियाँ चल रही है। इस समय अनुच्छेद-370 इस परिस्थिति को बनाए रखने में मदद कर रहा है, ऐसी स्थिति में अनुच्छेद-370 को अनुच्छेद-1, अनुच्छेद-368 के द्वारा समाप्त कर देना पूरी तरह से संवैधानिक है। इस संशोधन के बाद राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद-370 को मदद करने की घोषणा करनी पूरी तरह से उचित रहेगा।
4.      शोषणपूर्ण व्यवस्था –
 संविधान का अनुच्छेद-370 जनमत के दिल में परजीवियों को आहार उपलब्ध कराने से अधिक कुछ नहीं है। यह गरीबों को लूटती है और सम्पन्न अभिजात्यों की जेबे भरती है। कालान्तर में अनुच्छेद 370 राज्य के सत्तासीन वर्ग और नौकशाही, व्यापार, न्यायपालिका तथा वकालत जैसे पेशों के निहित तत्वों के हाथो  में शोषण का एक जरिया बन गई है। राजनीतिज्ञों के अलावा समृद्ध लोगों के लिए इसके जरिए धन कमाना आसान हो गया है।
5.      अन्यायकारी व्यवस्था –
संविधान के अनुच्छेद-370 ने वास्तव में एक ऐसा लोक बनाया है जहाँ न्याय नहीं है। समृद्ध वर्ग राज्य में किसी स्वस्थ वित्तीय कानून के प्रवेश की इजाजत नहीं देता है। आम जनता को यह समझने ही नहीं दिया जाता है कि अनुच्छेद 370 वास्तव में उन्हे निर्धन बनाए हुए है, अन्याय और आर्थिक विकास में उनकी हिस्सेदारी से वंचित रखे हुए है।
6.      अलगाववाद को प्रोत्साहन देने वाली व्यवस्था –

यह अनुच्छेद धोखे, दोहरेपन और सनसनी फैलाने वाली राजनीति को आधार प्रदान करता है। यह द्वि-राष्ट्र के सिद्धान्त की बिमार विरासत को जीवित रखता है। इस अनुच्छेद को बनाए रखने की मांग एक चतुर रणनीति का हिस्सा है, जिसका लक्ष्य मुख्य धारा से एक पृथक ध्वज फहरना है। इसके पीछे न तो जनहित की भावना है, न शक्ति एवं प्रगति की इच्छा और न ही विविधता के बीच सांस्कृतिक एकता प्राप्त करने की चाह ही है अपितु इसके पीछे नए अभिजात्य वर्गो और नए शेखों के स्वार्थ पूरे करने की इच्छा है।

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