Social inclusive policy and Mgnrega : A Sociological Study (SAMAJIK SAMAVESHI NITI AUR MGNREGA: EK SAMAJVIGYANIK ADHYAYAN)
-अनामिका सिंह
सामाजिक समावेशी नीति और मनरेगा : एक समाजवैज्ञानिक अध्ययन
’’महात्माँ गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम’’ कांग्रेस सरकार की महत्वाकांक्षी योजना के तौर पर देश के समस्त ग्रामीण जनपदों में समानान्तर चलायी जा रही है, जिसे ग्रामीण बेरोजगारी निवारण, महिला सशक्तिकरण, नगरीय प्रवजन को रोकना, पर्यावरणीय सुरक्षा व प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के साथ ही ग्रामीण इलाकों के नागरिकों के जीवन-यापन व जीवन स्तर में आर्थिक सुधारों के प्रतिफल के रूप में चलाया जा रहा है, केन्द्रीय आँकड़ों व मनरेगा समीक्षा रिपोर्ट के अनुसार इस योजना ने अपार सफलता प्राप्त की है जिसे ‘सील्वर वॉलेट’ भी कहा जाता हैं। मनरेगा योजना का निर्माण जिन उद्देश्यों को लेकर किया गया, उन सबको मिलाने पर आर्थिक सबलता व सामाजिक समावेशी की धारणा ही परिलक्षित होती है। जिसके लिए समाज के निम्न दर्जे के लोग व अनुसूचित जाति, जनजाति साथ ही आधी आबादी के रूप में महिलाओं को इस योजना में शामिल किया गया ताकि, इन वर्गों की आर्थिक सबलता के फलस्वरूप सामाजिक स्थिति में सुधार हो तथा यह निम्न वर्ग समाज की मुख्यधारासे जुड़ सकें। इन्हीं उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए देश के ग्रामीण जनपदों में अकुशलश्रम के लिए तैयार लोगों को 100 दिनों का निश्चित रोजगार दिया जायेगा, महिलाओं के लिए ग्रामीण स्तर पर निश्चित भाग 1/3 तय किया गया, व स्त्री-पुरूष समानता के लिए ‘समान कार्य समान मजदूरी’ का नियम बनाया गया, ताकि अकुशल ग्रामीण जनता आर्थिक रूप से खुद को मजबूत बना सकें।
सुप्रसिद्ध भारतीय अर्थशास्त्री प्रो0 अमर्त्य सेन ने अपनी कैपेबीलिटी एप्रोच की अवधारणा में बताया कि गरीबी व बाजारीकरण व्यक्ति को कमोडीटी प्राप्त करने में अक्षम बना देती है। जिससे व्यक्ति अपने जीवन दायी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में अक्षम हो जाता हैं जिसे इस योजना द्वारा दूर करने का प्रयास किया गया हैं। अमर्त्य सेन ने अपनी अवधारणा को समझाने के लिए साईकिल (कमोडीटी) का सहारा लिया है। जिसकी विशेषता के कारण व्यक्ति को आवागमन व ट्रांसपोर्वेशन की स्वतन्त्रता व सरलता प्राप्त होती है जिससे व्यक्ति की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। जिसके परिणाम स्वरूप व्यक्ति आर्थिक सुदृढ़ता को प्राप्त करता है, ठीक उसी रूप में सरकार द्वारा आर्थिक मदद, प्रत्यक्ष भुगतान, न होकर कार्य के बदले- भुगतान की व्यवस्था के अनुरूप यह योजना अकुशल ग्रामीण श्रमिकों की क्षमता में वृद्धि करता है जिससे व्यक्ति अत्यधिक कार्य के लिए प्रेरित होता है और उत्तम कार्य स्थिति को प्राप्त कर उत्तम आर्थिक सुदृढ़ता को प्राप्त करता हैं। कार्य क्षमता में वृद्धि व आर्थिक सबलता, सामाजिक समानता का रास्ता प्रसस्त करती है जिससे व्यक्ति की सामाजिक स्थिति में सुधार होता है परिणामस्वरूप व्यक्ति समाज की मुख्य धारा में समाहित होता चला जाता है, गरीबी का बाजारीकरण व्यक्ति को कार्योचित संसाधन प्राप्ति में अक्षम बना देते है जिससे व्यक्ति की कार्यक्षमता में कमी आ जाती हैं और व्यक्ति अपनी खराब आर्थिकस्थिति के कारण समाज की मुख्य धारा से कट जाता है जिससे यह योजना समाप्त करने की दिशा में एक प्रयास है।
सामाजिक समावेशी नीति और मनरेगा : एक समाजवैज्ञानिक अध्ययन
’’महात्माँ गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम’’ कांग्रेस सरकार की महत्वाकांक्षी योजना के तौर पर देश के समस्त ग्रामीण जनपदों में समानान्तर चलायी जा रही है, जिसे ग्रामीण बेरोजगारी निवारण, महिला सशक्तिकरण, नगरीय प्रवजन को रोकना, पर्यावरणीय सुरक्षा व प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के साथ ही ग्रामीण इलाकों के नागरिकों के जीवन-यापन व जीवन स्तर में आर्थिक सुधारों के प्रतिफल के रूप में चलाया जा रहा है, केन्द्रीय आँकड़ों व मनरेगा समीक्षा रिपोर्ट के अनुसार इस योजना ने अपार सफलता प्राप्त की है जिसे ‘सील्वर वॉलेट’ भी कहा जाता हैं। मनरेगा योजना का निर्माण जिन उद्देश्यों को लेकर किया गया, उन सबको मिलाने पर आर्थिक सबलता व सामाजिक समावेशी की धारणा ही परिलक्षित होती है। जिसके लिए समाज के निम्न दर्जे के लोग व अनुसूचित जाति, जनजाति साथ ही आधी आबादी के रूप में महिलाओं को इस योजना में शामिल किया गया ताकि, इन वर्गों की आर्थिक सबलता के फलस्वरूप सामाजिक स्थिति में सुधार हो तथा यह निम्न वर्ग समाज की मुख्यधारासे जुड़ सकें। इन्हीं उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए देश के ग्रामीण जनपदों में अकुशलश्रम के लिए तैयार लोगों को 100 दिनों का निश्चित रोजगार दिया जायेगा, महिलाओं के लिए ग्रामीण स्तर पर निश्चित भाग 1/3 तय किया गया, व स्त्री-पुरूष समानता के लिए ‘समान कार्य समान मजदूरी’ का नियम बनाया गया, ताकि अकुशल ग्रामीण जनता आर्थिक रूप से खुद को मजबूत बना सकें।
सुप्रसिद्ध भारतीय अर्थशास्त्री प्रो0 अमर्त्य सेन ने अपनी कैपेबीलिटी एप्रोच की अवधारणा में बताया कि गरीबी व बाजारीकरण व्यक्ति को कमोडीटी प्राप्त करने में अक्षम बना देती है। जिससे व्यक्ति अपने जीवन दायी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में अक्षम हो जाता हैं जिसे इस योजना द्वारा दूर करने का प्रयास किया गया हैं। अमर्त्य सेन ने अपनी अवधारणा को समझाने के लिए साईकिल (कमोडीटी) का सहारा लिया है। जिसकी विशेषता के कारण व्यक्ति को आवागमन व ट्रांसपोर्वेशन की स्वतन्त्रता व सरलता प्राप्त होती है जिससे व्यक्ति की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। जिसके परिणाम स्वरूप व्यक्ति आर्थिक सुदृढ़ता को प्राप्त करता है, ठीक उसी रूप में सरकार द्वारा आर्थिक मदद, प्रत्यक्ष भुगतान, न होकर कार्य के बदले- भुगतान की व्यवस्था के अनुरूप यह योजना अकुशल ग्रामीण श्रमिकों की क्षमता में वृद्धि करता है जिससे व्यक्ति अत्यधिक कार्य के लिए प्रेरित होता है और उत्तम कार्य स्थिति को प्राप्त कर उत्तम आर्थिक सुदृढ़ता को प्राप्त करता हैं। कार्य क्षमता में वृद्धि व आर्थिक सबलता, सामाजिक समानता का रास्ता प्रसस्त करती है जिससे व्यक्ति की सामाजिक स्थिति में सुधार होता है परिणामस्वरूप व्यक्ति समाज की मुख्य धारा में समाहित होता चला जाता है, गरीबी का बाजारीकरण व्यक्ति को कार्योचित संसाधन प्राप्ति में अक्षम बना देते है जिससे व्यक्ति की कार्यक्षमता में कमी आ जाती हैं और व्यक्ति अपनी खराब आर्थिकस्थिति के कारण समाज की मुख्य धारा से कट जाता है जिससे यह योजना समाप्त करने की दिशा में एक प्रयास है।
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