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भारत में नगरीय मलिन बस्ती एंव औद्योगिक आवास ( Urban Slum and Industrial Housing in India )

भारत में नगरीय मलिन बस्ती एंव औद्योगिक आवास

 Urban Slum and Industrial Housing in India




मलिन बस्ती नगर की निम्न आवास वाला वह क्षेत्र है जो अव्यवस्थित रूप में विकसित है और सामान्यतः जनाधिक्य एवं भीड़-भाड़ से युक्त है। गिस्ट एवं हलबर्ट ने इन्हें ‘‘विघटित क्षेत्रों का विशिष्ट स्वरूप’ तथा क्वीन एवं थॉमस ने ‘‘रोगग्रस्त क्षेत्र’’ कहा है। बर्गल के अनुसार ‘‘मलिन बस्तियाँ नगरों में वे क्षेत्र है जिनके घर निम्न स्तर के हो।’’ भारत सेवक समाज द्वारा प्रकाशित मलिन बस्तियाँ पर रिपोर्ट के अनुसार मलिन बस्तियाँ शहर के उन भागों को कहा जाता है जो कि मानव विकास की दृष्टि से अनुपयुक्त हो, चाहे वे पुराने ढांचे के परिणामस्वरूप हो या स्वास्थ्य की रक्षा की दृष्टि से जहाँ सफाई की सुविधाएं असम्भव हो।’’ मलिन बस्तियां सामान्यतः दो प्रकार की होती है कच्ची एवं पक्की। कच्ची मलिन बस्तियाँ घास-फूस एवं बांसो की सहायता से निर्मित की जाती है। जो बिना किसी योजना के बहुत ही अव्यवस्थित होती है। इसमें भूमि का प्रत्येक इंच कार्य में जाया जाता है। मलिन बस्तियों के सम्बन्ध में डॉ0 राधाकमल मुखर्जी ने लिखा है ‘‘झोपड़ियों में प्रकाश का अभाव रहता है और उनमें भीड़ बहुत रहती है तथा उनमें स्वच्छता तथा पानी की सुविधायें अपर्याप्त है।’’ पक्की मलिन बस्तियाँ भी बिना किसी योजना के बनती है। इसमें भी वायु एवं प्रकाश का उचित प्रबन्ध नहीं होता। इन बस्तियों का मालिक ठेकेदार या कोई धनी व्यक्ति होता है। जो थोड़ा बहुत धन लगाकर इनसे ऊँचा कियारा प्राप्त करता है।

इन मलिन बस्तियों में मकान एक दूसरें से सटाकर बनाये जाते है। बड़े नगरों में भूमि इतना मूल्यवान होता है कि एक मकान से दूसरे मकान तक जाने के लिए सड़कों की अपेक्षा छोटी एवं सकरी गलियां होती है। जिनमें सफाई की ओर कम ध्यान दिया जाता है। सड़े हुए कुड़ों का ढेर, औद्योगिक क्षेत्रों में मकानों के अधिक किराये, एक ही कमरे में अनेक स्त्री-पुरूषों को रहने को बाध्य कर देते है।

रोजगार की खोज में लोग गांवो से शहरों की ओर पलायन प्रायः होता ही रहा है। इसके लिए कई कारण भी उत्तरदायी रहे है। औद्योगिक क्रान्ति, नगरीय सुविधाएं, कृषि पर अपर्याप्त बजट आवंटन, सामाजिक असुरक्षा और भ्रष्टाचार ने सदैव गांव से शहर की ओर पलायन को बढ़ावा दिया है। इस पलायन के कारण नगरीय अवस्थापनात्मक ढांचे पर दबाव बढ़ता जा रहा है। जिससे मलिन समस्या को और भी गम्भीर बना दिया है। उत्तर प्रदेश स्लम एरियाज ¼Improvement and Clearance½ एक्ट 1962 के अनुसार ‘‘मलिन बस्ती वह क्षेत्र है जहां की अधिकांश इमारते जीर्ण शीर्ण दशा में भीड़-भाड़ युक्त होती है। ये इमारते सकरी गलियों में अव्यवस्थित ढंग से बसी होती है। यह क्षेत्र हवा-संचार, बिजली, स्वास्थ्य, स्वच्छता, सुरक्षा व  नैतिकता की दृष्टि से हानिकारक होती है। यह किसी भी दशा में मनुष्य के रहने के लिए अनुपयुक्त होता है।’’

ऐतिहासिक दृष्टि से मलिन बस्तियों की स्थिति -


मलिन बस्तियों की समस्या कोई आधुनिक समस्या नहीं है। बल्कि इन मलिन बस्तियों पर विशेषकर औद्योगीकरण के बाद में अनेक अध्ययन हुए है। इन मलिन बस्तियों का अलग-अलग सन् 1950 तक केन्द्र सरकार केवल अपने कर्मचारियों के लिए आवास प्रबन्ध करती रही है। पाकिस्तान से आये विस्थापितों को बसाने के लिए केन्द्र सरकार ने सबसे पहले ब़डे़ पैमाने पर आवास योजनाएं आरम्भ की। मई 1952 में संघ सरकार का आवास मंत्रालय स्थापित हुआ। इसके बाद से आवास निर्माण को प्रोत्साहित करने तथा उसके लिए आर्थिक सहायता देने की योजनाएं संगठित रूप से चलती रही। सरकार ने व्यक्तियों, सहयोगी संस्थाओं औद्योगिक सेवायोजकों तथा स्थानीय समितियों आदि को आवास के लिए आर्थिक सहायत प्रदान की है।
सार्वजनिक क्षेत्र के अतिरिक्त निजी क्षेत्र में भी मिल मालिकों तथा अन्य सेवायोजको ने अपने कर्मचारियों के  लिए आवास की बेहतर दशायें उपलब्ध कराने का प्रयास किया है। तमिलनाडु, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के मध्यम और निम्न आय के समूहों के लिए सीमित रूप में आवास जुटाने के लिए सहकारी आवास समितियां बनायी गई है। भारत जीवन बीमा निगम की ओर से भी मकान बनाने वालों को कर्ज की सुविधा दी जाती है। चतुर्थ पंचवर्षीय योजना के तृतीय वर्ष अर्थात् 1971-72 में राज्यों और संघीय क्षेत्रों में सामाजिक आवास को विभिन्न योजनाओं के अन्तर्गत आवासों का निर्माण हुआ व इस विकास में निम्नलिखित योजनाए थी-


1. झुग्गी और झोपड़ी हटाने की योजना (1960)
2. मलिन बस्ती का परिवेशगत विकास (1970)
3. मलिन बस्तियों की सफाई और विकास की योजना (1956)
4. औद्योगिक श्रमिकों और अन्य निर्धन वर्गो के लिए योजना (1966)


मलिन बस्तियों में आवास समस्या केन्द्र तथा राज्य सरकारों के लिए चिन्ता का विषय रही है। क्योंकि लोगों की व्यक्तिगत तथा सामाजिक भलाई के लिये इसका बहुत महत्व है। स्वाधीनता के पश्चात् सरकार ने यह स्वीकार किया कि लोगों को आवास सुविधायें प्रदान करने के लिए राज्य की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। परिणामस्वरूप सरकार की यह भूमिका उत्तरोत्तर बढ़ती रही है और आवास के लिए सरकारी व्यय में बराबर वृद्धि की जाती रही है।

मलिन बस्तियों में आवासीय समस्या से बहुत सी नगरीय व्याधिकी उत्पन्न होती है। नगरीय व्याधिकी एक Applied Science है। अगर यह व्याधिकीय समस्याओं के निवारण में दिलचस्पी नहीं लेगा तब इसकी उपयोगिता ही नष्ट हो जाएगी। अतः नगरीय व्याधिकी न केवल Proper functioning of Social Groups and Social system में बाधा डालने वाली समस्याओं या परिस्थितियों के अध्ययन से सम्बन्धित है। बल्कि उन दशाओं या समस्याओं के निराकरण में दिलचस्पी लेने से भी सम्बन्धित है। यही कारण है कि नगरीय व्याधिकी न केवल नगरीय समाजों में सामाजिक विघटन के कारणों का अध्ययन करते है बल्कि औद्योगिकरण को भी संक्रमित कर देते है।

नगरीय व्याधिकी अध्ययनों में मलिन बस्तियों का अध्ययन एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। औद्योगीकरण एवं नगरीकरण ने अनेक समस्याओं को नगर में उत्पन्न करने का श्रेय प्राप्त किया है। इनमें मलिन बस्तियाँ भी एक प्रमुख समस्या है। वास्तविकता यह है कि प्रत्येक समाज एवं प्रत्येक राष्ट्र में यह समस्या पायी जाती है। भले ही इसका स्वरूप जो भी हो। उपप्रमाणिक गृह विकास अर्थात् स्लम आदि नामों से अभिहित ये क्षेत्र किसी नगरीय क्षेत्र में अभिन्न अंग है। यह क्षेत्र ऐसा है जिसमें क्षेत्र की स्थिति और उनके मकानों की आर्थिक, भौतिक, सामाजिक एवं नाम से जाना जाता है। जैसे कानपुर में इन्हें अहाता , कलकत्ता में बस्ती , बम्बई में चाल, दिल्ली में बस्ती , और मद्रास में चेरी  कहते है। बम्बई के श्रमिकों की एक बस्ती का वर्णन करते हुए बी0 शिवाराव ने लिखा है कि जब बम्बई के मलिन बस्ती में एक महिला डाक्टर एक मरीज को देखने गई तो उसने देखा कि एक कमरे में 4 गृहस्थियां ;भ्वनेमूपमिद्ध रहती थी। जिसके सदस्यों की संख्या 24 थी। ¼Industrial workers in Indian P.N.S½ मद्रास की मलिन बस्ती चेरी  की दशा का वर्णन महात्मा गांधी निम्नलिखित शब्दों में करते है, एक चेरी जिसे देखने मैं गया था उसके चारों ओर पानी और गंदी नालियां थी। वर्षा ऋतु में मनुष्य जाने कैसे वहां रहते होंगें? एक बात यह है कि यह चेरियॉ सड़क के स्तर से नीची है और वर्षा ऋतु में उनमें पानी भर जाता है। इनमें सड़कों, गलियों की कोई व्यवथा नहीं है। और अधिकतम झोपड़ियां में नाममात्र के रोशनदान भी नहीं होते है। यह चेरियां इतनी नीची होती है कि बिना पूरी तरह झुके उनमें प्रवेश भी नहीं किया जा सकता है। यहा की सफाई न्यूनतम स्तर की सफाई से भी कही अधिक खराब होती है।
ये अध्ययन व वक्तव्य नगरों में श्रमिकों की दुर्दशा की बानगी भर है। कालान्तर में इन मलिन बस्तियों की दशा में कुछ भी सुधार देखने को नहीं मिला है। विभिन्न कारणों से नगरों की ओर बढ़ते प्रवजन व नगरों के फैलाव ने मलिन बस्तियों की दुर्दशा में वृद्धि की है।

औद्योगिक नगरों में मलिन बस्तियां एवं कारण -

मलिन बस्तियों को साफ करने पर नियुक्त परामर्शदाता समिति के अनुसार भारत में औद्योगिक नगरों में 7 प्रतिशत से 60 प्रतिशत तक लोग मलिन बस्तियों में रहते है। अकेले कलकत्ता नगर में 6 लाख जनता मलिन बस्तियों में रहती है। देश में लगभग 115 लाख श्रमिक मलिन बस्तियों में रहते है। देश के विचारवान लोगों ने इन मलिन बस्तियों की भारी आलोचना की है। परन्तु जैसा कि डा0 वी अग्निहोत्री ने सन् 1950 तथा 1954 में कानपुर में अपने सर्वेक्षण में पता लगाया है इन बस्तियों की दशा में कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ है।
औद्योगिक नगरों में मलिन बस्तियों के होने के मुख्य कारण निम्नलिखित है।

1. नगरों में मकानों की कमी
2. नगर नियोजन की कमी
3. शोषण और हृदयहीनता
4. गरीबी
5. सरकार द्वारा आवश्यक सुधारों का अभाव

केन्द्रिय न्यायमंत्री श्री ए0के0सेन की अध्यक्षता में नियुक्त मलिन बस्तियों को हटाने की परामर्शदाता समिति ने सुझाव दिया है कि मलिन बस्तियों को हटाने के कार्यक्रम को नगर विकास कार्यक्रम का ही अंग मान लिया जाना चाहिए और सबसे पहले कलकत्ता कानपुर , मद्रास, दिल्ली एवं बम्बई और अहमदाबाद की मलिन बस्तिया हटायी जानी चाहिए।

औद्योगिक आवास (Industrial Housing)

भारत के नगरों में आवास की समस्या अत्यन्त विकट है। सन् 1921 के बाद से ही नगरीय क्षेत्रों में मकानों की मांग बढ़ती रही है। जबकि उसकी पूर्ति नहीं हो सकी है। नगरों के लगभग 46 प्रतिशत लोग अपने मकानों में रहते है। औद्योगिक श्रमिकों में से अधिकतर निम्न स्तर के आवासों में रहते है। औसत रूप से प्रति वर्ष देश में लगभग 20 लाख आवासों की मांग उत्पन्न होती है। कार्यात्मक विशेषताएं बहुत ही निम्न स्थिति की है। कि उनकी उपादेयता उत्पादकता एवं वांछनीयता बहुत कम हो जाती है। वस्तुतः मलिन बस्ती नगरीय अधिवास के गिरावट की दशा को दर्शाती है। जिसके मकान इतने अनुपयुक्त होते है कि वे मानव जाति के स्वास्थ्य और नैतिक मूल्यों के लिए संकट बन जाते है। मलिन बस्ती की चन्द शब्दों में स्पष्ट करना या इसकी प्रकृति को स्पष्ट करना सम्भव नहीं है। वास्तविकता यह है कि मलिन बस्ती  एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ Sub-standard Housing Condition पाया जाता है। इन क्षेत्रों में मकान Haphazard Manner  में बने होते है तथा उन मकानों तक पहुंचने के रास्ते भी अत्यन्त संकीर्ण होते है। साथ ही जैसा कि मलिन बस्ती के नाम से ही यह स्पष्ट होता है कि एक ऐसा क्षेत्र है जहां गन्दगी का साम्राज्य रहता है। इन क्षेत्रों में यत्र तत्र कूड़े- करकटों का ढेर पाया जाता है साथ ही इन क्षेत्रों में शौचालय की भी व्यवस्था नहीं रहती है।

फलतः वहां की हवा एवं भूमि की गन्दगी बढती चली जाती है। इन क्षेत्रों को विशिष्ट म्यूनिसिपल सुविधाए भी उपलब्ध नहीं रहती है। जल आपूर्ति की समस्या विकराल रूप में पायी जाती है और इन क्षेत्रों में जल अर्थात् पेयजल एवं आवास की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं रहती है।

मलिन बस्ती की समस्या को सुलझाने के तरीके या सुझाव -

नगर नियोजकों एवं नीति निर्धारकों आदि ने मलिन बस्तियों की समस्याओं के निराकरण के लिए विभिन्न तरीकों का उल्लेख किया है। चूंकि मलिन बस्ती विभिन्न प्रकार के होते है। अतः विभिन्न प्रकार की मलिन बस्तियों के समाप्ति का तरीका भिन्न भिन्न हो सकता है। बर्गेल के शब्दों में म्पत्ति का तरीका भिन्न भिन्न हो सकता है। बर्गेल के शब्दों में The pre-requisite for the elimination of the transition area is proper zoning मध्यवर्ती भाग में दुगने होटल, मनोरंजनात्मक संस्थाएं एवं कार्यालय आदि स्थापित करना चाहिए इन क्षेत्रों मे उद्योग धन्धे स्थापित करने पर राज्य प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए। साथ ही प्रशासन को चाहिए कि वह Haphazard manner  में भवनों का निर्माण में प्रतिबन्ध लगाए तथा भवन निर्माण से सम्बन्धित जो नियम कानून पारित हो उन्हें सख्ती से लागू करें।

उन्ही समस्या के समाप्ति के तरीके की चर्चा करते हुए के0 एन0 वेकटयप्पा ने निम्न मुख्य तरीकों की चर्चा की है।

1. मलिन बस्तियों के निराकरण का एक उपाय यह हो सकता है कि मलिन बस्तियों को पूर्ण रूपेण समाप्त कर दिया जाए तथा उसके स्थान पर शहर बसाया जाए।
2. मलिन बस्तियों के निराकरण का दूसरा तरीका यह हो सकता है कि मलिन बस्तियों को ।इवसपे नहीं किया जाए बल्कि इन बस्तियों में कल्याणकारी योजनाए लागू कर यहां के निवासियों की स्थिति में सुधार लाए जाए।
3. ये लोग औद्योगिक श्रमिक उद्योग धन्धों के आस-पास ही निवास करना चाहते है। अतः उनको निवास की सुविधा प्रदान करने के लिए कार्य करने के स्थान के नजदीक आवास की सुविधा प्रदान करनी चाहिए।
4. श्रमिकों के आवास का प्रबन्ध करना मिल मालिकों के लिए अनिवार्य कर दिया जाए और सरकार आवश्यक सहायता दे।
5. नगरपालिकायें मकानो के बारे में नमूना निश्चित करे और मध्यवर्ग एवं निम्न आय के व्यक्तियों को सरकारी सहायता देकर निजी मकान बनाने को प्रोत्साहित किया जाये।

उपर्युक्त विवरणों ये यह पता चलता है कि मलिन बस्तियों को समाप्त करने के लिए किसी एक तरीके को अपनाकर उसे समाप्त नहीं किया जा सकता है। इसके लिए विभिन्न तरीकों को अपनाना आवश्यक होता है। अर्थात् मलिन बस्तियों को पनपने के कारकों को जानकर उसकी समाप्ति के लिए प्रयत्न किये जा सकते है।

संदर्भ -
1. शर्मा, रामनाथ एवं शर्मा (2000), राजेन्द्र कुमार, अपराधशास्त्र एवं दण्डशास्त्र तथा सामाजिक विघटन, एटलांटिक पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स, नई दिल्ली, 110027, पृ0 259
2. आहूजा, राम (2000) भारतीय समाज, रावत पब्लिकेशन्स, जयपुर, पृ0 340
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