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नवरात्रि के पहले दिन होती है "देवी शैलपुत्री" की पूजा (Shailputri is Worshiped on first day of Navratri )



नवदुर्गा में प्रथम पूजनीया "माँ शैलपुत्री देवी" 
Shailputri Devi
नवरात्रि के पहले दिन होती है "देवी शैलपुत्री" की पूजा 
नवरात्र के पहले दिन शक्तिस्वरुपा देवी दुर्गा के प्रथम रुप मां शैलपुत्री की पूजा और आराधना का विधान है. हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार, देवी शैलपुत्री का जन्म पर्वतराज हिमालय के यहां हुआ था. इसलिए वे शैलसुता भी कहलाती हैं.

मां शैलपुत्री ध्यान मंत्र

वंदे वांछितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌ । 
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥
पूणेन्दु निभां गौरी मूलाधार स्थितां प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम् ॥
पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता ॥
प्रफुल्ल वंदना पल्लवाधरां कातंकपोलां तुंग कुचाम् ।
कमनीयां लावण्यां स्नेमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम् ॥



देवी शैलपुत्री की उत्पत्ति की पौराणिक कथा

पौराणिक आख्यानों के अनुसार, अपने पूर्वजन्म में देवी शैलपुत्री प्रजापति दक्षराज की कन्या थीं और तब उनका नाम सती था. आदिशक्ति देवी सती का विवाह भगवान शंकर से हुआ था. एक बार दक्षराज ने विशाल यज्ञ आयोजित किया, जिसमें सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन शंकरजी को नहीं बुलाया.

रोष से भरी सती जब अपने पिता के यज्ञ में गईं तो दक्षराज ने भगवान शंकर के विरुद्ध कई अपशब्द कहे. देवी सती अपने पति भगवान शंकर का अपमान सहन नहीं कर सकीं. उन्होंने वहीं यज्ञ की वेदी में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए.


अगले जन्म में देवी सती शैलराज हिमालय की पुत्री बनीं और शैलपुत्री के नाम से जानी गईं. जगत-कल्याण के लिए इस जन्म में भी उनका विवाह भगवान शंकर से ही हुआ. पार्वती और हेमवती उनके ही अन्य नाम हैं.

ऐसा है प्रथम नवदुर्गा शैलपुत्री का दिव्य रुप

नवदुर्गाओं में प्रथम देवी शैलपुत्री अपने दाहिने हाथ में त्रिशूल धारण करती है, जो भगवान शिव का भी अस्त्र है. देवी शैलपुत्री का त्रिशूल जहां पापियों का विनाश करता है, वहीं भक्तों को अभयदान का आश्वासन देता है.

उनके बाएं हाथ में कमल का पुष्प सुशोभित है, जो अविचल ज्ञान और शांति का प्रतीक है. भगवान शिव की भांति देवी शैलपत्री का वाहन भी वृषभ है. यही कारण है कि वे वृषारूढ़ा देवी के नाम से भी विख्यात हैं.

देवी शैलपुत्री की आराधना के प्रभावशाली मंत्र

नव दुर्गा के प्रथम रुप शैलपुत्री की शक्तियां अपरम्पार हैं. मान्यता है कि नवरात्र-पूजन के प्रथम दिन इनकी उपासना उपयुक्त मंत्रों से करने से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और देवी मां की कृपा प्राप्त होती है, तो आइए जानते हैं उनकी आराधना के कुछ प्रभावशाली स्तुति और मंत्रों के बारे में:

मां शैलपुत्री स्तोत्र पाठ


टिप्पणिया
प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागर: तारणीम् ।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम् ॥
त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान् ।
सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम् ॥
चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह: विनाशिन ।
मुक्ति भुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रमनाम्यहम् ॥

शास्त्रों के अनुसार, नवरात्रि के प्रथम दिन साधक और योगी देवी शैलपुत्री की आराधना कर अपने चित्त और मन को मूलाधार चक्र पर केंद्रित करते हैं.

साभार- खबर NDTV 21.09.2017


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