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बेटी की अंतिम विदाई कविता Daughter's farewell poem


बेटी की अंतिम विदाई कविता

Daughter's final farewell poem


एक कवि नदी के किनारे खड़ा था ! तभी वहाँ से एक लड़की का शव नदी में तैरता हुआ जा रहा था। तो कवि ने उस शव से पूछा ----


कौन हो तुम ओ सुकुमारी, बह रही नदियां के जल में ?
कोई तो होगा तेरा अपना, मानव निर्मित इस भू-तल में !
किस घर की तुम बेटी हो, किस क्यारी की कली हो तुम ?
किसने तुमको छला है बोलो, क्यों दुनिया छोड़ चली हो तुम ?

किसके नाम की मेंहदी बोलो, हांथों पर रची है तेरे ?
बोलो किसके नाम की बिंदिया, मांथे पर लगी है तेरे ?
लगती हो तुम राजकुमारी, या देव लोक से आई हो ?
उपमा रहित ये रूप तुम्हारा, ये रूप कहाँ से लायी हो?



कवि की बातें सुनकरलड़की की आत्मा बोलती है................


कविराज मुझ को क्षमा करो, गरीब पिता की बेटी हूं !
इसलिये मृत मीन की भांती, जल धारा पर लेटी हुँ !
रूप रंग और सुन्दरता ही, मेरी पहचान बताते है !
कंगन, चूड़ी, बिंदी, मेंहदी, सुहागन मुझे बनाते है ! 

पिता के सुख को सुख समझा, पिता के दुख में दुखी थी मैं !
जीवन के इस तन्हा पथ पर, पति के संग चली थी मैं !
पति को मेने दीपक समझा, उसकी लौ में जली थी मैं !
माता-पिता का साथ छोड़उसके रंग में ढली थी मैं !
पर वो निकला सौदागर, लगा दिया मेरा भी मोल ! 

दौलत और दहेज़ की खातिर पिला दिया जल में विष घोल !
दुनिया रुपी इस उपवन में, छोटी सी एक कली थी मैं !
जिस को माली समझा, उसी के द्वारा छली थी मैं !
इश्वर से अब न्याय मांगने, शव शैय्या पर पड़ी हूँ मैं !
दहेज़ की लोभी इस संसार में, दहेज़ की भेंट चढ़ी हूँ मै!..दहेज़ की भेंट चढ़ी हूँ मैं !!..

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