हरा सोना है "तेंदुपत्ता"
बस्तर में हर वर्ष अरबो रूपये का तेंदुपत्ता उत्पादन होता है। तेंदुपत्ता से हजारो आदिवासियों को आमदनी होती है। वनोपज के रूप तेंदुपत्ता आदिवासियों को सर्वाधिक रोजगार एवं आर्थिक रूप से सक्षम बनाता है। तेंदुपत्ता से होने वाली आमदनी सोने चांदी के व्यापार से होने वाली आमदनी के बराबर होती है। इसी कारण यह हरा सोना के नाम से चर्चित है।
प्रत्येक वर्ष मार्च अप्रैल माह में तेंदु के छोटे छोटे पौधो ंमें नये पत्ते लगने प्रारंभ हो जाते है। ग्रामीण अपने परिवार सहित इन तेंदु के पौधों से पत्तों की तोड़ाई करते है। इन पत्तों की गडिडयां बनाकर इन्हे धुप में सुखाया जाता है। तेंदुपत्ता संग्राहकों को प्रति बोरा 2500.00 रू. की मजदुरी मिलती है।
ये पत्ते तेंदू के वृक्ष (डायोसपायरस मेलेनोक्जायलोन) से प्राप्त होते है जो इबेनेसी परिवार का पौधा है एवं भारतीय उप महाद्वीप की प्रजाति है । ट्रूप (1921) के अनुसार डायोसपायरस मेलेनोक्जायलोन (डायोसपायरस टोमेन्टोजा एवं डायोसपायरस टुपरू) समस्त भारत में शुष्क पर्णपाती वनों की एक मुख्य प्रजाति है तथा यह नेपाल, भारतीय पठार, गंगा के पठार, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिमी समुद्री तट में मलाबार तक तथा पूर्वी समुद्री तट में कोरोमंडल तक पाई जाती है। यह प्रजाति दक्षिण में नीलगिरी पहाड़ों में भी पाई जाती है।
तेंदूपत्ता अपने आसानी से लपेटे जाने वाले गुण एवं अत्यधिक उपलब्धता के कारण बीड़ी बनाने के लिये सर्वाधित उपयुक्त पत्ता माना जाता है। देश के कई हिस्सों मे पलाश, साल आदि प्रजातियों के पत्ते भी बीड़ी बनाने में उपयोग किये जाते है। परंतु तेंदू के पत्ते के अपनी गुणवत्ता के कारण अतुलनीय है। बीड़ी उद्योग में मौटे तौर पर जिन गुणों के कारण इस पत्ते को बीड़ी बनाने के लिये चयन एवं श्रेणीकरण किया जाता है वे हैं- आकार, पत्ते का मोटापन,
माह फरवरी-मार्च में तेंदू की झाड़ियों का शाखकर्तन किया जाता है एवं लगभग 45 दिनों के पश्चात् परिपक्व पत्ते एकत्रित कर लिये जाते हैं। पत्तों को 50 से 100 पत्तों के बन्डल में बांधा जाता है एवं लगभग 1 सप्ताह तक धूप में सुखाया जाता है।
सूखी गड्डियों को कोमल बनाने के लिये पानी से सींचकर जूट के बोरों में भरा जाता है एवं 2 दिन तक पुनः धूप में रखा जाता है। इस प्रकार अच्छी तरह भरे एवं उपचारित बोरे इनके बीड़ी उत्पादन में उपयोग तक भंडारित किये जा सकते है। तेंदूपत्ता की तुड़ाई, उपचार एवं भण्डारण में बहुत सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है। यह एक अत्यंत संवेदनशील उत्पाद है एवं उपरोक्त प्रक्रिया में थोड़ी सी भी गलती या लापरवाही के कारण इसकी गुणवत्ता खराब हो सकती है एवं यह बीड़ी बनाने के लिये अनुपयुक्त हो सकता है।
तेंदु के वृक्ष में एक मीठा फल लगता है जिसे तेंदु ही कहा जाता है। यह एक पीले, नारंगी या लाल रंग का मीठा फल होता है। तेंदू को अंग्रेजी में पर्सिम्मन कहते हैं और कभी-कभी डेट-प्लम भी कहते हैं क्योंकि बहुत से लोगों को इसका स्वाद खजूर और आलू-बुखारे का मिश्रण लगता है। तेंदु की लकड़ी को जलाने पर चर्र चर्र की आवाज उत्पन्न होती है।
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