याद आती हो तुम
जानती हो?
याद आती हो तुमi
जब भी देखता हूँ किसी को किसी का हाथ पकड़ चलते हुए।
याद आती हो तुम
जब भी सबके बीच कहीं वीराने में भटकता है मेरा मैं रोते हुए।
याद आती हो तुम
जब भी सुनता हूँ किसी पायल की झंकार किसी संगत से आते हुए।
जानती हो?
खुद को कितना समझाता हूँ मैं
जब भी अकेला होता है मेरा मैं
खुद को कितना समझाता हूँ मैं
जब भी यादों को जबरदस्ती भगाता हूँ मैं
खुद को कितना समझाता हूँ मैं
जब भी खुद को बहुत समझदार बताता हूँ मैं
जानती हो?
फिर याद आती हो तुम
जब भी किसी और के बारे में सोचता हूँ मैं
फिर याद आती हो तुम
जब भी कभी अपनी सांसो को महसूस करता हूँ मैं
फिर याद आती हो तुम
जब भी कभी बैचैनी में किसी को ढूंढता हूँ मैं
जानती हो?
फिर खुद को कितना समझाता हूँ मैं
जब भी अकेले कहीं निकालकर वादियों में खो जाने का मन करता है।
फिर खुद को कितना समझाता हूँ मैं
जब भी किसी को थोड़ा सताने और जलाने का मन करता है।
फिर खुद को कितना समझाता हूँ मैं
जब भी जिंदगी के उन बीते पलों में खो जाने का मन करता है।
जानती हो ?
फिर याद आती हो तुम,
फिर खुद को कितना समझाता हूँ मैं।
: दर्शन
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