कोरोना वायरस: 'कम्युनिटी ट्रांसमिशन' से निपटने के लिए कितना तैयार है भारत
Corona- samvedana |
दुनिया भर में 3 लाख कोरोना वायरस मामले
• पहले एक लाख 67 दिन में
• दूसरे एक लाख 11 दिन
• तीसरे एक लाख 4 दिन
अब एक नज़र भारत के कोरोना वायरस संक्रमित मरीज़ो की संख्या पर
पहले 50 मामले 40 दिन में आए
• फिर 100 तक का आकड़ा पहुंचने में लगे अगले 4 दिन
• 150 तक पहुंचने में अगले 4 दिन और लगे
• 200 पॉजिटिव केस पहुंचने में 2 दिन लगे
• और उसके बाद से हर दिन लगभग 100 नए मामले सामने आ रहे हैं.
भारत में अस्पतालों की संख्या
इन्हीं आँकड़ों को देखते एक आम भारतीय के मन में आशंका है कि क्या हमारी तैयारी ऐसी है कि हम कोरोना के कहर से निपट पाएंगे.
ऐसे में ज़रूरत है हमें भारत के हेल्थ केयर सिस्टम को समझने की. भारत के हेल्थ केयर सिस्टम को दो भागों में बांटा जा सकता है. पब्लिक और प्राइवेट.
पहले बात पब्लिक हेल्थ केयर सिस्टम की यानी वो सिस्टम जो सरकार के नियत्रंण में हैं. इस सरकारी सिस्टम को हम तीन लेयर में बांट सकते हैं.
पहला है प्राइमरी हेल्थ केयर. इसमें आते हैं प्राइमरी हेल्थ सेंटर जिन्हें पीएचसी कहते हैं. फिर आते हैं कम्युनिटी हेल्थ डिस्पेंसरी. इन दोनों ही जगह पर रोज़मर्रा के सर्दी, बुख़ार जैसे इलाज का ही प्रावधान होता है.
इसके बाद आते हैं ज़िला अस्पताल. यहां कुछ एक बड़ी बीमारियों का इलाज संभव हो सकता है.
दूसरे और तीसरे स्तर को सेकेंडरी और टर्शीइरी हेल्थ केयर सिस्टम कहते हैं. इनमें आते हैं राज्यों के अधीन आने वाले अस्पताल और केन्द्र सरकार के अधीन आने वाले अस्पताल.
देश में मौजूद प्राइवेट अस्पतालों को भी इन्हीं के तहत गिना जाता है.
अब बात नेशनल हेल्थ प्रोफ़ाइल 2019 के आंकड़ों की. इस रिपोर्ट के मुताबिक़ देश में करीब 26,000 सरकारी अस्पताल हैं. इनमें से 21,000 ग्रामीण इलाक़ों में हैं जबकि 5,000 अस्पताल शहरी इलाक़ों में हैं.
एक नज़र में आपको ये आंकड़े थोड़ा राहत ज़रूर देते नज़र आएंगे. लेकिन बात जब हर मरीज़ और उपलब्ध बिस्तरों की संख्या के अनुपात की होगी तो आंकड़े बेहद चिंताजनक है.
भारत में हर एक अस्पताल के बेड पर हैं 1,700 मरीज़. राज्यों की बात करें तो बिहार की हालात सबसे ख़राब है और तमिलनाडु की सबसे अच्छी.
यहां एक और बात ध्यान रखने की ज़रूरत है कि इसके अलावा सरकार के पास सेना के लिए बने अस्पताल हैं और रेलवे अस्पताल भी हैं.
अस्पतालों के इन आँकड़ों में प्राइवेट अस्पतालों की संख्या नहीं जोड़ी गई है. कोविड-19 से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने राज्यों के साथ मिल कर एक प्लान तैयार किया है.
इस प्लान के तहत सभी राज्यों को अपने यहां एक अस्पताल कोविड-19 के मरीज़ो के इलाज के लिए अलग से तैयार करने के दिशा निर्देश पहले ही जारी कर दिए हैं.
डॉक्टर मिल पाएंगे?
अब ज़रा एक नज़र डॉक्टरों के आँकड़े पर भी डाल लेते हैं.
नेश्नल हेल्थ प्रोफाइल के मुताबिक़ देश भर में 2018 तक साढ़े 11 लाख एलोपैथिक डॉक्टर उपलब्ध हैं.
WHO यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ डॉक्टर और मरीज़ों का अनुपात हर 1,000 मरीज़ पर 1 डॉक्टर का होना चाहिए.
135 करोड़ की भारत की जनसंख्या में डॉक्टरों की संख्या बेहद कम है और WHO के नियम के मुताबिक़ तो बिलकुल भी नहीं है.
अगर ये मान लें कि एक समय में इस संख्या में से 80 फ़ीसदी डॉक्टर मौजूद रहते हैं तो एक डॉक्टर पर तकरीबन 1500 मरीज़ की ज़िम्मेदारी हुई.
भारत में क्रिटिकल केयर यूनिट की उपलब्धता
अब ये बात ज़्यादातर लोग जानते हैं कि कोरोना से संक्रमित लोगों को सांस लेने संबंधी दिक्कतें आती है. लेकिन ज़्यादातर लोग दवाई से ठीक भी हो जाते हैं.
कोविड19 के इलाज में तकरीबन 5 फ़ीसदी मरीज़ों को ही क्रिटिकल केयर की ज़रूरत पड़ती है. ऐसे लोगों को उपचार के लिए आईसीयू की ज़रूरत पड़ती है.
इंडियन सोसाइटी ऑफ़ क्रिटिकल केयर के मुताबिक़ देश भर में तकरीबन 70 हज़ार आईसीयू बेड हैं.
इंडियन सोसाइटी ऑफ़ क्रिटिकल केयर के अध्यक्ष ध्रुव चौधरी के मुताबिक़, "देश में तकरीबन 40 हज़ार ही वेंटिलेटर मौजूद है. जिनमें से अधिकतर मेट्रो शहरों, मेडिकल कॉलेजों और प्राइवेट अस्पतालों में उपलब्ध हैं."
इस संस्था का दावा है कि भारत में क्रिटिकल केयर में मरीज़ों के साथ मिल कर काम करने वाली ये इकलौती संस्था है.
कोरोना का संक्रमण तीसरे चरण में पहुंचने पर ख़तरा इस बात है कि ज़्यादा लोगों को क्रिटिकल केयर की ज़रूरत पड़ेगी. केंद्र सरकार इसलिए हर संभव कोशिश कर रही है कि भारत में इस बीमारी को दूसरे चरण में ही रोक लिया जाए.
तो क्या तीसरे चरण में कोविड19 बीमारी पहुंचती है तो इतने वेंटिलेटर काफ़ी होंगे? इस सवाल के जवाब में ध्रुव चौधरी कहते हैं कि इटली, चीन स्पेन जैसे हालात भारत में हुए तो ये बहुत ही भयावह स्थिति होगी. मौजूदा संख्या के साथ ये मुमकिन नहीं हो पाएगा.
डॉ. चौधरी के मुताबिक़ आईसीयू से ज़्यादा समस्या वेंटिलेटर की होने वाली है.
वो कहते हैं, "आईसीयू का मतलब वो जगह जहां मरीज़ों को ज़्यादा निगरानी में आसानी से रखा जा सकता है. मॉनिटर और कुछ उपलब्ध मशीनों के ज़रिए अस्पताल के कुछ वॉर्ड को आईसीयू में तब्दील तो किया जा सकता है, लेकिन आने वाले दिनों में कोविड19 की वजह से स्थिति बेकाबू न हो इसके लिए सरकार को बाहर से वेंटिलेटर मंगवाने की ज़रूरत पड़ेगी."
स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक़ भारत ने आपात स्थिति से निपटने के लिए तकरीबन 1200 और वेंटिलेटर मंगवाए हैं, जो जल्द ही जांच के लिए उपलब्ध होंगे.
सेंटर फॉर डिज़ीज डायनेमिक्स के निदेशक डॉ. रामानन लक्ष्मीनारायण ने बीबीसी से बातचीत में भी इस बात की ओर इशारा किया था.
डॉक्टर रामानन लक्ष्मीनारायण ने कहा, "हो सकता है हम बाक़ी देशों की तुलना में थोड़ा पीछे चल रहे हों, लेकिन स्पेन और चीन में जैसे हालात रहे हैं, जितनी बड़ी संख्या में वहां लोग संक्रमण की चपेट में आए हैं, वैसे ही हालात यहां बनेंगे और कुछ हफ़्तों में हमें कोरोना की सुनामी के लिए तैयार रहना चाहिए."
टेस्टिंग लैब और टेस्टिंग किट की तैयारी
भारत को लेकर कई दिनों से सवाल उठ रहे हैं कि हम कोविड19 के मरीज़ो की कम तादाद में टेस्टिंग कर रहे हैं. सोमवार तक भारत में तकरीबन 17 हज़ार मरीज़ों की ही टेस्टिंग की है.
हालांकि सरकार ने समय-समय पर इन आरोपों से इनकार किया है. लेकिन ये जानना ज़रूरी है कि बाक़ी देश कैसे टेस्ट कर रहे हैं.
आईसीएमआर के महानिदेशक बलराम भार्गव के मुताबिक़ फ़्रांस हर सप्ताह 10 हज़ार लोगों के टेस्ट कर रहा है, ब्रिटेन में 16 हज़ार लोगों की टेस्टिंग हर हफ़्ते हो रही है जबकि अमरीका में तकरीबन 26 हज़ार लोगों की टेस्टिंग प्रति सप्ताह हो रही है.
जो देश प्रति सप्ताह ज़्यादा लोगों की टेस्टिंग कर रहे हैं उनमें शामिल हैं दक्षिण कोरिया जो तकरीबन 80 हज़ार लोगों की टेस्टिंग एक हफ़्ते में कर रहा है. वैसे ही जर्मनी में तकरीबन 42 हज़ार और इटली में हर हफ़्ते तकरीबन 52 हज़ार लोगों की टेस्टिंग की जा रही है.
रविवार को केंद्र सरकार के संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए डॉक्टर भार्गव ने कहा था कि भारत में प्रति सप्ताह 60 से 70 हज़ार लोगों की टेस्टिंग करने की क्षमता है. इसी कड़ी में सरकार ने सोमवार को 12 प्राइवेट लैब को कोविड19 के मरीज़ो को टेस्ट करने की इजाज़त दे दी है. इनके लैब्स के पास देश भर में हज़ारों कलेक्शन सेंटर भी हैं.
साथ ही दो लैब को कोविड19 की जांच में इस्तेमाल होने वाले टेस्टिंग किट बनाने की इजाज़त दी गई है.
हालांकि सरकार ने स्पष्ट किया है कि ये टेस्टिंग किट एफडीए से अप्रूव नहीं है. लेकिन स्वास्थ्य के क्षेत्र में रिसर्च पर काम करने वाली भारत की संस्था आईसीएमआर ने इसे अप्रूवल दिया है.
भारत का स्वास्थ्य बजट
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आँकड़ों के मुताबिक़ साल 2017-18 में भारत सरकार ने अपने जीडीपी का 1.28 फ़ीसदी ही स्वास्थ्य सेवाओं पर ख़र्च करने का प्रवाधान रखा.
इसके अलावा 2009-10 में प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य पर सरकार ने ख़र्च किए महज़ 621 रूपए था.
पिछले आठ सालों में सरकार का प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य सेवाओं पर ख़र्चा बढ़ा ज़रूर है लेकिन 2017-18 में ये बढ़ कर भी 1657 रुपए प्रति व्यक्ति ही हुआ है.
इन आँकड़ों से साबित होता है कि स्वास्थ्य को लेकर कितना जागरूक है भारतीय और हमारी सरकार.
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