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जून, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

वाराणसी में निवासित विधवाएं और वैश्वीकरण (Globalization and Widows of Varanasi)

वाराणसी में निवासित  विधवाएं और वैश्वीकरण  (Globalization and Widows of Varanasi) भारतीय सामाजिक व्यवस्था धर्म आधारित व्यवस्था रही है। इस व्यवस्था में पवित्रता एवं अपवित्रता का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। दुर्खीम पवित्रता एवं अपवित्रता को प्रकार्यात्मक पहलू से जोड़ते हैं। लेकिन भारतीय समाज में कुछ स्वार्थ परक शक्तियों ने पवित्रता व अपवित्रता को प्रकार्यात्मक पहलू से न जोड़कर इसे महिला व पुरूष के संस्तरण में लागू करने का प्रयास किया और यह प्रयास कालान्तर में महिला व पुरूष के भेद के रूप में अग्रसरित हुआ। इस संस्तरण में सबसे निम्न स्थिति को प्राप्त विधवाओं पर विधवापन जैसी अपवित्रता का ऐसा ठप्पा लगा की उनका संम्पूर्ण जीवन नरकीय हो गया। कर्त्तव्य के बोझ से दबी अधिकार-वंचित, यौन-शुचिता और पवित्रता के नाम पर बराबर छली जाती रही नारी को विभिन्न धार्मिक कर्मकाण्ड़ों, उत्सवों, त्योहारों में भागीदारिता पूर्णतः प्रतिबन्धित कर दी गयी। यहाँ तक कि इस पितृसत्तात्मक समाज में विधवाओं की हत्या (पति की चिता के साथ अग्नि प्रवेश) के अमानवीय कृत्य को ‘सतीत्व’ के गौरव से महिमा मण्डित किया गय...

लिव-इन रिलेशनशिप (सहजीवन) और कानून (Live in Relationship and Law)

लिव-इन रिलेशनशिप (सहजीवन) और कानून  (Live in Relationship and Law) कुछ लोग बिना विवाह के साथ रहने लगे हैं। नए जमाने के इस नए रिश्ते को ‘लिव-इन  रिलेशनशिप’ कहा जाता है।लिव-इन रिलेशनशिप  एक विवादास्पद लेकिन modern life के लिए एक अनूठा रिश्ता है जिसमे शादी की पुरानी मान्यता को दरकिनार करते हुए जोड़े साथ रहते है और ठीक उसी तरह से अपनी जिम्मेदारी एक दूसरे के लिए निभाते है जैसे वो शादी करने के बाद करते लेकिन इसमें जो अलग है वो है किसी भी तरह के नैतिक दबाव का नहीं होना और अगर वो चाहे तो कभी भी अलग हो सकते है और अगर इसमें से सामाजिक view और सदियों से चली आ रही कुछ धार्मिक मान्यताओं को अलग करदे तो कुछ भी गलत नहीं है क्योंकि दो वयस्क जो अपने बारे में ठीक से भला बुरा सोच सकते है और जिनकी मानसिक स्थिति ठीक हो वो यह फैसला ले सकते है और तय कर सकते है कि उन्हें कैसे और किसके साथ अपनी जिन्दगी व्यतीत करनी है फिर चाहे उस रिश्ते को कोई नाम दिया जाये या नहीं |   लिव इन रिलेशनशिप आज के आधुनिक जमाने की सच्चाई है। इस रिश्ते में दो लोग साथ-साथ तो रहते हैं लेकिन उनके बीच विवाह क...

भारतीय संस्कृति की सापेक्षता का एक समाजशास्त्रीय विश्लेषण (A sociological analysis of the relativity of Indian culture)

भारतीय संस्कृति की सापेक्षता का एक समाजशास्त्रीय विश्लेषण (A sociological analysis of the relativity of Indian culture) संस्कृत और संस्कृति दोनों ही शब्द संस्कार से बने हैं। संस्कार का अर्थ है कुछ कृत्यों की पूर्ति करना, एक व्यक्ति जन्म से ही अनेक प्रकार के संस्कार करता है जिनमें उसे विभिन्न प्रकार की भूमिकाएं निभानी पड़ती है। संस्कृति का अर्थ होता है विभिन्न संस्कारों के द्वारा सामूहिक जीवन के उद्देश्यों की प्राप्ति। यह परिमार्जन की एक प्रक्रिया है। संस्कारों को सम्पन्न करके ही एक मानव सामाजिक प्राणी बनता है। हमारी सामाजिक संस्कृति ही है जो हमारे समाज ने हमें भेंट की है इस सामाजिक विरासत को ही संस्कृति कहते हैं इसके अन्तर्गत मानव द्वारा निर्मित उस सम्पूर्ण व्यवस्था का समावेश होता है जिसमें रीतिरिवाज, रुढ़ियाँ, परम्पराएँ, संस्थाएँ, भाषा, धर्म, कला आदि का समावेश होता है जो मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक होते हैं। संस्कृति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को प्राप्त होती हुई निरन्तर आगे बढ़ती है साथ ही प्रत्येक पीढ़ी इसको परिवर्तित, परिवर्धित एवं विकसित करती है। भारतीय संस...

नियोजित ग्रामीण विकास कार्यक्रम एवं परिवर्तन (Planned Rural Development Program and Change)

नियोजित ग्रामीण विकास कार्यक्रम एवं परिवर्तन कुशकुल दीप सारांश  ग्रामीण भारत के चहुमुखी विकास का सपना विश्व के महान राजनीतिक संत महात्मा गांधी का था, उनका कहना था कि ‘‘दिल्ली भारत नहीं है, भारत तो गांवों में बसता है।’’ अतः यदि हमें भारत को उन्नत करना है तो गाँवों की दशा एवं विकास की दिशा में सुधार करना होगा। भारत आज जनसंख्या की दृष्टि से विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है और इसकी आबादी में निरंतर वृद्धि जारी है। जो विकास को कई स्तरों पर अवरोधित करती है ऐसी स्थिति में भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने का सपना महज एक सपना ही रह जायेगा। परिणामस्वरूप स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमारे देश में कृषि, उद्योग, यातायात, संचार, शिक्षा, स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था आदि सभी क्षेत्रों में विकास के मद्देनजर सामुदायिक विकास कार्यक्रम और अन्य सहायक योजनाओं को तेजी से बढ़ावा मिला।  प्रस्तावना- हमारे देश में 2011 की जनगणना के अनुसार 6 लाख 40 हजार गाँव है, जहॉ देश की लगभग 78 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। जहाँ एक तरफ आबादी में दिनों दिन वृद्धि परिलक्षित है वहीं दुसरी ओर संसाधनों में निरंतर कम...

समाज कल्याण एवं प्रबन्धन में सरकारी प्रयासों का वस्तुपरक अध्ययन (Roll of government efforts in social welfare and management)

समाज कल्याण एवं प्रबन्धन में सरकारी प्रयासों का वस्तुपरक अध्ययन - कुशकुल दीप  प्रस्तावना सामाजिक कल्याण सामान्य रूप से व्यक्तियों के जीवन को उन्नत करने एवं उनके कुशल क्षेम तथा विशिष्ट रूप में समाज के निराश्रित, वंचित, अलाभान्वित एवं विशेषाधिकार रहित वर्गों के कष्टों को दूर करने एवं उनकी दशा को सुधारने की ओर लक्षित है। समाज कल्याण के लक्ष्यों एवं उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु सरकार सामाजिक नीतियों का निर्माण करती है तथा इनके अनुसार सामाजिक अधिनियम बनाती है, विभिन्न परियोजनाओं कार्यक्रमों एवं स्कीमों को तैयार करती है, वित्तीय प्रावधान करती है एवं मंत्रालयों, विभागों, निगमों, अभिकरणों के रूप में प्रशासकीय संयंत्र एवं संगठनात्मक संरचना की व्यवस्था करती है तथा विभिन्न कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में अशासकीय संगठनों का समर्थन एवं सहयोग लेती है। सामाजिक सेवाओं, समाजकार्य, सामाजिक विधान आदि के क्षेत्रों में विभिन्न क्रियाकलापों का प्रबन्धन, समाज कल्याण प्रबन्ध की श्रेणी के अन्तर्गत आता है। समाज कल्याण प्रबन्ध : अर्थ एवं अवधारणा समाज कल्याण प्रबन्धन की अवधारणा की प्रमुखतया तब मिल...

मलिन बस्ती में महिलाओं की शैक्षिक स्थिति का अध्ययन ( Status of Women Education in Slums in India)

मलिन बस्ती में महिलाओं की शैक्षिक स्थिति का अध्ययन गन्दी बस्तियों की अवधारणा एक सामजिक सांस्कृतिक, आर्थिक समस्या के रूप में नगरीकरण-औद्योगिकरण की प्रक्रिया का प्रत्यक्ष परिणाम है। शहरों में एक विशिष्ट प्रगतिशील केन्द्र के चारों ओर विशाल जनसंख्या के रूप में गन्दी बस्तियाँ स्थापित होती हैं। ये बस्तियाँ शहरों में अनेकानेक तरह की अपराधिक क्रियाओं एवं अन्य वातावरणीय समस्याओं को उत्पन्न करती है, नगरों में आवास की समस्या आज भी गम्भीर बनी हुई है। उद्योगपति, ठेकेदार व पूँजीपति एवं मकान मालिक व सरकार निम्न वर्ग एवं मध्यम निम्न वर्ग के लोगों की आवास संबंधी समस्याओं को हल करने में असमर्थ रहे हैं। वर्तमान में औद्योगिक केन्द्रों में जनसंख्या की तीव्र वृद्धि हुई है एवं उसी के अनुपात में मकानों का निर्माण न हो पाने के कारण वहाँ अनेको गन्दी बस्तियाँ बस गयी है। विश्व के प्रत्येक प्रमुख नगर में नगर के पाँचवे भाग से लेकर आधे भाग तक की जनसंख्या गन्दी बस्तियों अथवा उसी के समान दशाओं वाले मकानों में रहती है। नगरों की कैंसर के समान इस वृद्धि को विद्वानों ने पत्थर का रेगिस्तान, व्याधिकी नगर, नरक की संक्षिप...

Background of Separatism in Jammu and Kashmir and Article 370 (जम्मू कश्मीर के अलगाववाद की पृष्ठभूमि और धारा ३७०

जम्मू कश्मीर के अलगाववाद की पृष्ठभूमि और  धारा ३७० भारतीय संविधान की धारा 370 एक अस्थायी प्रकृति का अनुच्छेद है। जो कश्मीर राज्य के अस्थाई संक्रमणकालीन और विशेष प्रावधानों से संबन्धित है , जो भारतीय संविधान के भाग 11 के तहत , जम्मू और कश्मीर राज्य भारतीय संवैधानिक व्यवस्था में अनुच्छेद 370 के तहत विशेष दर्जे को प्राप्त करता है। जो भारतीय संविधान के धारा- 1 के अनुसार भारत राज्य क्षेत्र तथा राज्य पूनर्गठन अधिनियम- 1956 तथा संविधान अधिनियम सात के अनुसार भारतीय संघ राज्यों की सूची में वर्णित एक विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त करता है। देश को आजादी मिलने के बाद से लेकर अब तक यह धारा भारतीय राजनीति में बहुत विवादित रही है। जिसके कारण स्वतंत्र भारत में आज भी कश्मीर का मुद्दा अलगाव की समस्या को अपने आप में समेटे हुए एक गम्भीर समस्या के रूप में भारतीय लोकतंत्र के सम्मुख एक चुनौती प्रस्तुत कर रहा है।                 भौगोलिक रूप से भारत का एक अभिन्न हिस्सा पर संवैधानिक रूप से अंशतः अलग व विशेष राज्य का दर्ज...