वाराणसी में निवासित विधवाएं और वैश्वीकरण (Globalization and Widows of Varanasi) भारतीय सामाजिक व्यवस्था धर्म आधारित व्यवस्था रही है। इस व्यवस्था में पवित्रता एवं अपवित्रता का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। दुर्खीम पवित्रता एवं अपवित्रता को प्रकार्यात्मक पहलू से जोड़ते हैं। लेकिन भारतीय समाज में कुछ स्वार्थ परक शक्तियों ने पवित्रता व अपवित्रता को प्रकार्यात्मक पहलू से न जोड़कर इसे महिला व पुरूष के संस्तरण में लागू करने का प्रयास किया और यह प्रयास कालान्तर में महिला व पुरूष के भेद के रूप में अग्रसरित हुआ। इस संस्तरण में सबसे निम्न स्थिति को प्राप्त विधवाओं पर विधवापन जैसी अपवित्रता का ऐसा ठप्पा लगा की उनका संम्पूर्ण जीवन नरकीय हो गया। कर्त्तव्य के बोझ से दबी अधिकार-वंचित, यौन-शुचिता और पवित्रता के नाम पर बराबर छली जाती रही नारी को विभिन्न धार्मिक कर्मकाण्ड़ों, उत्सवों, त्योहारों में भागीदारिता पूर्णतः प्रतिबन्धित कर दी गयी। यहाँ तक कि इस पितृसत्तात्मक समाज में विधवाओं की हत्या (पति की चिता के साथ अग्नि प्रवेश) के अमानवीय कृत्य को ‘सतीत्व’ के गौरव से महिमा मण्डित किया गय...
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