सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

भारत में नगरीय मलिन बस्ती एंव औद्योगिक आवास ( Urban Slum and Industrial Housing in India )

भारत में नगरीय मलिन बस्ती एंव औद्योगिक आवास  Urban Slum and Industrial Housing in India मलिन बस्ती नगर की निम्न आवास वाला वह क्षेत्र है जो अव्यवस्थित रूप में विकसित है और सामान्यतः जनाधिक्य एवं भीड़-भाड़ से युक्त है। गिस्ट एवं हलबर्ट ने इन्हें ‘‘विघटित क्षेत्रों का विशिष्ट स्वरूप’ तथा क्वीन एवं थॉमस ने ‘‘रोगग्रस्त क्षेत्र’’ कहा है। बर्गल के अनुसार ‘‘मलिन बस्तियाँ नगरों में वे क्षेत्र है जिनके घर निम्न स्तर के हो।’’ भारत सेवक समाज द्वारा प्रकाशित मलिन बस्तियाँ पर रिपोर्ट के अनुसार मलिन बस्तियाँ शहर के उन भागों को कहा जाता है जो कि मानव विकास की दृष्टि से अनुपयुक्त हो, चाहे वे पुराने ढांचे के परिणामस्वरूप हो या स्वास्थ्य की रक्षा की दृष्टि से जहाँ सफाई की सुविधाएं असम्भव हो।’’ मलिन बस्तियां सामान्यतः दो प्रकार की होती है कच्ची एवं पक्की। कच्ची मलिन बस्तियाँ घास-फूस एवं बांसो की सहायता से निर्मित की जाती है। जो बिना किसी योजना के बहुत ही अव्यवस्थित होती है। इसमें भूमि का प्रत्येक इंच कार्य में जाया जाता है। मलिन बस्तियों के सम्बन्ध में डॉ0 राधाकमल मुखर्जी ने लिखा है ‘‘झोप...

युवा संस्कृति एवं सामाजिक अन्तर्द्वन्द्व एक समाजशास्त्रीय विश्लेषण / Youth Culture and Social Conflict (Yuva Sanskriti evam Samajik Antardvand)

            युवा संस्कृति एवं सामाजिक अन्तर्द्वन्द्व  Youth Culture and Social Conflict सारांश- किसी समाज या राष्ट्र के युवा उस समाज या राष्ट्र के नव निर्माण में  अपना अक्षुण्य योगदान देते हैं। हमारा भारत वर्ष दुनियाँ के अन्य देशों की तुलना में एक युवा देश है। देश में 34 फीसदी जनसंख्या युवाओं की है, इतिहास साक्षी है कि राष्ट्र की भाग्य लिपियों को युवाओं ने ही अपने रक्त की स्याही से लिखा है। लेकिन आज राष्ट्र की संस्कृति निरंतर तेजी से परिवर्तित होती जा रही है क्योंकि युवा वर्ग अपनी परम्परागत जीवन शैली, विचारों को त्याग कर, अपनी एक नवीन जीवन शैली (संस्कृति) बनाने के लिए अग्रसर है। जिससे भारतीय संस्कृति संक्रमण काल की दौर से गुजर रही है। युवा संस्कृति ने युवाओं में एक नवीन जीवन का सूत्रपात किया है लेकिन वहीं दूसरी तरफ युवावर्ग में सामाजिक अन्तर्द्वन्द की भावना को भी जन्म दिया है। युवावस्था कोई अवधारणा या सिद्धांत नहीं बल्कि यह मनुष्य के जीवन की एक सतत् प्रक्रिया का घटक व बाल्यावस्था और प्रौढ़ावस्था के बीच की संक्रमण कालीन अवस्था है। ’यु...

भारतीय संस्कृति : एक संतुलित जीवन पद्धति ( Indian Culture: A balanced life system)

भारतीय संस्कृति : एक संतुलित जीवन पद्धति ( Indian Culture: A balanced life system) संस्कृति का इतिहास अत्यन्त प्राचीन है एवं उसका क्षेत्र सार्वभौमिक और सार्वकालिक है। इस धरती पर मानव के जन्म के साथ ही उसका उदय हुआ और मानव जीवन के विकास के अनुरूप ही उसकी धारा निरन्तर आगे बढती गयी। मानव जीवन के इतिहास के निर्माणक जितने भी साधन हैं,उनमें संस्कृति का स्थान मुख्य है। विष्व के प्रत्येक राष्ट्र की अपनी संस्कृति है। युगों-युगों से प्रत्येक राष्ट्र अपनी सांस्कृतिक थाती को सहेज कर रखता आया है जो कि उसकी गरिमा का द्योतक रहा है। किसी भी राष्ट्र की उन्नति का सीधा सम्बन्ध उसकी संस्कृति से होता है। संस्कृति ही वह तत्व है जो एक राष्ट्र की परम्पराओं को अन्य से अलग करते हुये उसे एक विषिष्ट पहचान देती है। भारत प्राचीन काल से ही सांस्कृतिक गतिविधियों और परम्पराओं में विष्व का अग्रणी राष्ट्र रहा है। जब समस्त विष्व की सभी सभ्यतायें प्रगति के शैषवकाल में विचरण कर रही थी, तब भारतीय ऋषि तत्वज्ञान की गहन मीमांसा, चिंतन एवं मनन में लीन थे।यथा- ज्ञानं तृतीयं मनुजस्य नेत्रं समस्ततत्वार्थ विलोकिदक्षम् ...

वाराणसी में निवासित विधवाएं और वैश्वीकरण (Globalization and Widows of Varanasi)

वाराणसी में निवासित  विधवाएं और वैश्वीकरण  (Globalization and Widows of Varanasi) भारतीय सामाजिक व्यवस्था धर्म आधारित व्यवस्था रही है। इस व्यवस्था में पवित्रता एवं अपवित्रता का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। दुर्खीम पवित्रता एवं अपवित्रता को प्रकार्यात्मक पहलू से जोड़ते हैं। लेकिन भारतीय समाज में कुछ स्वार्थ परक शक्तियों ने पवित्रता व अपवित्रता को प्रकार्यात्मक पहलू से न जोड़कर इसे महिला व पुरूष के संस्तरण में लागू करने का प्रयास किया और यह प्रयास कालान्तर में महिला व पुरूष के भेद के रूप में अग्रसरित हुआ। इस संस्तरण में सबसे निम्न स्थिति को प्राप्त विधवाओं पर विधवापन जैसी अपवित्रता का ऐसा ठप्पा लगा की उनका संम्पूर्ण जीवन नरकीय हो गया। कर्त्तव्य के बोझ से दबी अधिकार-वंचित, यौन-शुचिता और पवित्रता के नाम पर बराबर छली जाती रही नारी को विभिन्न धार्मिक कर्मकाण्ड़ों, उत्सवों, त्योहारों में भागीदारिता पूर्णतः प्रतिबन्धित कर दी गयी। यहाँ तक कि इस पितृसत्तात्मक समाज में विधवाओं की हत्या (पति की चिता के साथ अग्नि प्रवेश) के अमानवीय कृत्य को ‘सतीत्व’ के गौरव से महिमा मण्डित किया गय...

लिव-इन रिलेशनशिप (सहजीवन) और कानून (Live in Relationship and Law)

लिव-इन रिलेशनशिप (सहजीवन) और कानून  (Live in Relationship and Law) कुछ लोग बिना विवाह के साथ रहने लगे हैं। नए जमाने के इस नए रिश्ते को ‘लिव-इन  रिलेशनशिप’ कहा जाता है।लिव-इन रिलेशनशिप  एक विवादास्पद लेकिन modern life के लिए एक अनूठा रिश्ता है जिसमे शादी की पुरानी मान्यता को दरकिनार करते हुए जोड़े साथ रहते है और ठीक उसी तरह से अपनी जिम्मेदारी एक दूसरे के लिए निभाते है जैसे वो शादी करने के बाद करते लेकिन इसमें जो अलग है वो है किसी भी तरह के नैतिक दबाव का नहीं होना और अगर वो चाहे तो कभी भी अलग हो सकते है और अगर इसमें से सामाजिक view और सदियों से चली आ रही कुछ धार्मिक मान्यताओं को अलग करदे तो कुछ भी गलत नहीं है क्योंकि दो वयस्क जो अपने बारे में ठीक से भला बुरा सोच सकते है और जिनकी मानसिक स्थिति ठीक हो वो यह फैसला ले सकते है और तय कर सकते है कि उन्हें कैसे और किसके साथ अपनी जिन्दगी व्यतीत करनी है फिर चाहे उस रिश्ते को कोई नाम दिया जाये या नहीं |   लिव इन रिलेशनशिप आज के आधुनिक जमाने की सच्चाई है। इस रिश्ते में दो लोग साथ-साथ तो रहते हैं लेकिन उनके बीच विवाह क...

भारतीय संस्कृति की सापेक्षता का एक समाजशास्त्रीय विश्लेषण (A sociological analysis of the relativity of Indian culture)

भारतीय संस्कृति की सापेक्षता का एक समाजशास्त्रीय विश्लेषण (A sociological analysis of the relativity of Indian culture) संस्कृत और संस्कृति दोनों ही शब्द संस्कार से बने हैं। संस्कार का अर्थ है कुछ कृत्यों की पूर्ति करना, एक व्यक्ति जन्म से ही अनेक प्रकार के संस्कार करता है जिनमें उसे विभिन्न प्रकार की भूमिकाएं निभानी पड़ती है। संस्कृति का अर्थ होता है विभिन्न संस्कारों के द्वारा सामूहिक जीवन के उद्देश्यों की प्राप्ति। यह परिमार्जन की एक प्रक्रिया है। संस्कारों को सम्पन्न करके ही एक मानव सामाजिक प्राणी बनता है। हमारी सामाजिक संस्कृति ही है जो हमारे समाज ने हमें भेंट की है इस सामाजिक विरासत को ही संस्कृति कहते हैं इसके अन्तर्गत मानव द्वारा निर्मित उस सम्पूर्ण व्यवस्था का समावेश होता है जिसमें रीतिरिवाज, रुढ़ियाँ, परम्पराएँ, संस्थाएँ, भाषा, धर्म, कला आदि का समावेश होता है जो मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक होते हैं। संस्कृति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को प्राप्त होती हुई निरन्तर आगे बढ़ती है साथ ही प्रत्येक पीढ़ी इसको परिवर्तित, परिवर्धित एवं विकसित करती है। भारतीय संस...

नियोजित ग्रामीण विकास कार्यक्रम एवं परिवर्तन (Planned Rural Development Program and Change)

नियोजित ग्रामीण विकास कार्यक्रम एवं परिवर्तन कुशकुल दीप सारांश  ग्रामीण भारत के चहुमुखी विकास का सपना विश्व के महान राजनीतिक संत महात्मा गांधी का था, उनका कहना था कि ‘‘दिल्ली भारत नहीं है, भारत तो गांवों में बसता है।’’ अतः यदि हमें भारत को उन्नत करना है तो गाँवों की दशा एवं विकास की दिशा में सुधार करना होगा। भारत आज जनसंख्या की दृष्टि से विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है और इसकी आबादी में निरंतर वृद्धि जारी है। जो विकास को कई स्तरों पर अवरोधित करती है ऐसी स्थिति में भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने का सपना महज एक सपना ही रह जायेगा। परिणामस्वरूप स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमारे देश में कृषि, उद्योग, यातायात, संचार, शिक्षा, स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था आदि सभी क्षेत्रों में विकास के मद्देनजर सामुदायिक विकास कार्यक्रम और अन्य सहायक योजनाओं को तेजी से बढ़ावा मिला।  प्रस्तावना- हमारे देश में 2011 की जनगणना के अनुसार 6 लाख 40 हजार गाँव है, जहॉ देश की लगभग 78 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। जहाँ एक तरफ आबादी में दिनों दिन वृद्धि परिलक्षित है वहीं दुसरी ओर संसाधनों में निरंतर कम...

समाज कल्याण एवं प्रबन्धन में सरकारी प्रयासों का वस्तुपरक अध्ययन (Roll of government efforts in social welfare and management)

समाज कल्याण एवं प्रबन्धन में सरकारी प्रयासों का वस्तुपरक अध्ययन - कुशकुल दीप  प्रस्तावना सामाजिक कल्याण सामान्य रूप से व्यक्तियों के जीवन को उन्नत करने एवं उनके कुशल क्षेम तथा विशिष्ट रूप में समाज के निराश्रित, वंचित, अलाभान्वित एवं विशेषाधिकार रहित वर्गों के कष्टों को दूर करने एवं उनकी दशा को सुधारने की ओर लक्षित है। समाज कल्याण के लक्ष्यों एवं उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु सरकार सामाजिक नीतियों का निर्माण करती है तथा इनके अनुसार सामाजिक अधिनियम बनाती है, विभिन्न परियोजनाओं कार्यक्रमों एवं स्कीमों को तैयार करती है, वित्तीय प्रावधान करती है एवं मंत्रालयों, विभागों, निगमों, अभिकरणों के रूप में प्रशासकीय संयंत्र एवं संगठनात्मक संरचना की व्यवस्था करती है तथा विभिन्न कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में अशासकीय संगठनों का समर्थन एवं सहयोग लेती है। सामाजिक सेवाओं, समाजकार्य, सामाजिक विधान आदि के क्षेत्रों में विभिन्न क्रियाकलापों का प्रबन्धन, समाज कल्याण प्रबन्ध की श्रेणी के अन्तर्गत आता है। समाज कल्याण प्रबन्ध : अर्थ एवं अवधारणा समाज कल्याण प्रबन्धन की अवधारणा की प्रमुखतया तब मिल...